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________________ अल्पचदुख आयु बन्ध काल २ वाले का १ ले का काल १७६ १७७ १ १८६ १८१ १८२ १८७ දීපස १८६ १८३ १८४ १८५ 15 १०८ १७६ दर्शन मोह क्षपक की 850 39 सूत्र १७५ | दर्शन मोह उपशमक सम्मुख (या सातिशय मिध्यादृशि की सूक्ष्म साम्पराय का अनिवृत्तिकरण का अपूर्व करण का १०. अष्टकर्म संक्रमण व निर्जराकी अपेक्षा अल्पबहुत्व २६२ दर्शन मोह पक का १६३ अनन्तानुबन्धी विसयोजक का १६४ स्व स्थान अघ प्रवृत्त प्रमत्ताप्रमत्त संयत का संयतासंयत का दर्शन मोह उपशमक का (सातिशय मिध्यादृष्टि का ) Q51 ज. व उ. संयतासंयत की अध प्रवृत्त स्वस्थान संयत अर्थात् अप्रमत्त व प्रमत्त संयत की अनन्तानुबन्धी विसयोजक की चारित्र मोह उपशमकअपूर्व करण की अनिवृत्ति करण की सूक्ष्म साम्पराय की उपशान्त कषाय वीतराग (११) की चारित्र मोह क्षपक की अपूर्व करण की अनिवृत्तिकरण की सूक्ष्म साम्पराय की क्षीण कषाय वीतराग (१२) की स्व स्थान अधःप्रवृत्त सयोग केबलीको समुद्रात केवली की (गो.जी./जी. प्र / ६७ / १६८/२) योग निरोध केवली की ज उ. प्ररूपणा १. भिन्न गुणधारी जीवोमे गुण श्रेणी रूप प्रदेश निर्जरा की ११ स्थानीय सामान्य प्ररूपणा ज 15 सूक्ष्म साम्पराय का अनिवृत्तिकरण का अपूर्व करण का Jain Education International उ. १६५ (च.स्व १२/४,२.७/ १७५-१८४/८०-०६) (क.पा.१/११/गा. ३० ९९६ २६/१०६) (स. सु./१/४५) (स सि./१/४२ / १५१-१५४) (ध.१०/ ४२.४.७४ / २६१२१६) गोजी/६६-६७१६०) स्वामी स्व स्थान अध प्रवृत्त सयोग केवली का क्षीण कषाय वीतराग का चारित्र मोह क्षपक स गुणा वि. अ स गुणा बि. अ. अल्पव सर्व स्टोक बर्स, गुणी " 90 33 २ भिन्न गुणधारी जीवों मे गुण श्रेणी प्रदेश निर्जरा के काल को ११ स्थानीय प्ररूपणा ( . १२/४,२.७/१०६-११६/८५-८६) योग निरोध केवली का समुद्रात केवली का (प्ररूपणा नं. १ के आधार पर) כג " 13 सर्व स्तोक गुणा असं. " १७४ सूत्र ९६० १६१ क्रम १ २ ३ ४ ५ उपशान्त कषाय वीतराग का चारित्र मोह उपशामक स्वामी उत्तरोत्तर भागहारों के नाम सर्व संक्रमण का भागहार गुण כ ३. पाँच प्रकार के सक्रमणों द्वारा हत, कर्म प्रदेशो के परिमाण मे अल्पबहुत्य (गो.क/सू./४३०-४३५/२००) उत्कर्ष भाहार अपकर्षण " अध प्रवृत्त सक्रमण द्वारा हत ज सं. उ. योगों का गुणकार कर्म स्थितिकी नाना गुणहानि शलाका के अच्छे का प्रथम वर्गमूल कर्म स्थितिको एक गुणहानिके समय का परिमाण कर्म स्थितिकी अन्योन्याभ्यस्त राशि पल्य कर्म की उत्कृष्ट स्थिति विध्यात संक्रमण का भागहार उद्वेलना का भागहार कर्मों के अनुभाग की नाना गुण हानि शलाका कर्मानुभाग की एक गुण हानि का जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only आयाम कर्मानुभाग को च गुण हानि का आयाम कर्मानुभाग की २ गुण हानि कर्मानुभाग की अन्योन्याभ्यस्त राशि २. प्रकीर्णक रूगणारी अल्पबहुत्व अस. गुणा 23 अल्पबहुत्व सर्व स्तोक असं. गुणा गुणकार - पत्य / असं. ऊपर तुल्य पत्य / असं. गुणे पव्य के अर्द्धच्छेद • रूप असं गुणा विशेषाधिक असं गुणा wxxxshp क्रोड क्रोड़ गुणा असं गुजा गुणकार-सूर्य / असं. 15 अनन्त गुणी 19 डेढ़ गुणी एक गुणहानि से दुगुनी अनन्त गुणी www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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