SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अल्पबहुत्व (१४) जीव समासों में विभिन्न प्रदेश बन्धोकी अपेक्षा (ष ख १०/४, २, ४ / सु १७४ / ४३१) पदेस अति जहा जोगजन्याहू जी तथा दमं वरि पदेसा अप्पाए त्ति भणिदव्वं ॥ १७४॥ - जिस प्रकार योग अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की गयी है (देखो न ८ प्ररूपणा) उसी प्रकार प्रदेश अस्पबहुत्व की प्ररूपणा करना चाहिए। विशेष इतना है कि योग के स्थानोमें यहाँ प्रदेश ऐसा कहना चाहिए। नोट- योगके एक अविभाग प्रतिच्छेद में भी अनन्त कर्म प्रदेशोंके अपकर्षण शक्ति है । (१५) आठ आकर्षोकी अपेक्षा आयुबन्धके जीवोंकी प्ररूपणा ( गो जी / जो. प्र. ५१८ / ११५/२) आठ अपकर्षो द्वारा करनेवाले 19 ६ " आयु बन्ध काल ८ वाले का का काल विषय {་ 11 (१६) आठों अपकर्षो में आयु बन्धके कालकी अपेक्षा (गो, जी./जी. ४.५१८/१९५८) संकेत :- ८ वाले का-८ अपकर्षो द्वारा आयु बन्ध करनेवाले जीवका ८वें का आठवें अपकर्ष का बन्ध काल सं.संख्यात वि. अ. विशेषाधिक 19 59 19 11 11 11 91 ८ वाले का ६ वें का काल 99 99 ६ " ८ वाले का ५ वें का काल Jain Education International 14 41 31 19 " to ST उ. ज. उ. उ. ज. अल्पमतुरख उ. ज. उ. उ. ज उ. उ. ज. उ. स्तोक संख्यात गुणे 39 अल्पबहुत्व स्तोक वि अ. सं. गुणा वि. अ. सं. गुणा वि अ सं गुणा वि. अ. स. गुणा वि. अ सं. गुणा वि. अ. स. गुणा वि अ सं. गुणा वि अ. सं. गुणा वि. अ १७३ आयु बन्ध काल ५ वाले का ५ वे का काल ८ वाले का ४थे का काल ७ ६ ५ ४ ८ वाले का ३ रे का काल 60 ६ * "* ४ ३ ७ ६ ८ वाले का २ 史 ४ ११ ३ 97 "3 ४ 3 11 11 ६.. * "1 17 २ .. ८ बाले का १ ले का काल 11 जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only 57 रे का काल, " 71 19 " " ३. प्रकीर्णक प्ररूपणाएँ ज. व उ. काल ज उ. ज. उ. ज. उ. ज. उ. ज उ. ज. उ. ज उ. ज. उ. 3. उ. ज. उ. ज. उ ज. उ. ज. उ. ज. उ ज. उ. ज उ. ज. उ ज उ. ज. उ. ज. उ. ज. उ. ज उ ज उ. अवयव सगुणा वि. अ सं. गुणा वि. अ. सं. गुणा वि. अ. सं. गुणा fa. 3. 1. गुणा वि. अ. सं. गुणा वि. अ. सं. गुणा वि अ स गुणा वि अ. सं. गुणा वि. अ. सं. गुणा वि. अ सं. गुणा वि अ. स. गुणा वि अ सं. गुणा वि अ सं गुणा बि.अ. सं. गुणा बि. अ. सं. गुणा वि. अ. सं. गुला fa.. सं गुणा बि. अ सं. गुणा वि. अ. सं. गुणा वि. अ. भंगु वि. अ. सं. गुणा वि अ. सं गुणा वि अ. सं गुणा वि. अ. सं. गुणा वि. अ. www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy