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________________ अल्पबहुत्व १७५ प्रकीर्णक प्ररूपणाएँ ११. अष्टकर्मबन्ध उदय सत्यादि १० करणोंकी अपेक्षा भुजगारावि पदोमें अल्पबहुत्वकी ओघ व आदेश प्ररूपणा नोट - इस सारणी में केवल शास्त्र के पृष्ठादि ही दर्शाये गये है । अत उस उस प्ररूपणा को देखने के लिए शास्त्र का वह वह स्थान देखिये । विषय ३ भुजगारादि पदों की अपेक्षा ४. ज उ वृद्धि हानि की अपेक्षा १. उदीरणा सम्बन्धी अल्पबहुत्व की ओघ व आदेश प्ररूपणा (प. १५/३.) ४७ ८०-८१ १४७-१५७ १. स्वामित्व सामान्य २८० आदि प्रकृतियों की उदीरणा रूप भंगों के स्वामित्वकी अपेक्षा ३. भुजगारादि पोंके बच • ४. ज उ वृद्धि हानिके बन्धक २. उदय सम्बन्धी अल्पबहुत्व की ओघ व आदेश प्ररूपणा (४. १५/१) १. स्वामित्व सामान्य अपेक्षा २८५ २८८-२८६ २. भुजगारादि के स्वामित्वकी अपेक्षा ३. पद निक्षेप सामान्य की अपेक्षा ४. पद निलेपाके स्वामिको अपेक्षा ५. वृद्धि हानि की अपेक्षा ६. .. के स्वामित्वको अपेक्षा ५. षट्स्थान ६. बन्ध अध्यवसाय स्थान 39 17 उप स्वामि की अपेक्षा • "1 11 Jain Education International ३. उपशमना सम्बन्धी अल्पबहुत्व की ओघ व आदेश प्ररूपणा (प. १५/१ ) १. स्वामित्व सामान्य अपेक्षा २७७ २७६ २. भुजगारादि की अपेक्षा ३. अन्य सर्व विकल्पों की अपेक्षा १५ २८० २८१ २८१ ४. संक्रमण सम्बन्धी अल्पबहुत्वकी ओघ व आदेश प्ररूपणा - ( घ. १५/१ ) १. सर्व विकल्पों की अपेक्षा | २८३ | २८३ । २८३ । २८३ (मव/१०/ ५. बन्धसम्बन्धी अल्पबहुत्वकी ओष व आदेश प्ररूपणा १. बन्धक अबन्धक जीव सा. की अपेक्षा १/४१४-५३६ । २. ज उ पदों के बन्धकों १. ज. उ. पदों के बन्धक २. भुजगारादि पदके बन्धक ३. ज. उ. बृद्धि हानि रूप पदों के ७. २८-२४ आदि सत्त्व स्थानों के काल की अपेक्षा प्रकृतिविषयक मूल प्र उत्तर प्रकृति बन्धक ४. स्थान वृद्धि हानि रूप पदों के बन्धक ५. बन्धक सामान्यकाप्रमाण ६. प्रकृति सत्त्व असत्त्व का स्वामित्व 31 ६. सत्समुत्पत्तिकादि पदके स्वामी १०. ज. उ. वृद्धि हानि पदोंकी अपेक्षा ५० ५३ 19 २८० स्थिति विषयक मूल प्र उत्तर प्रकृति 닥 ६७ २/४८२-२८४ २/५३३-५३६ १ / ३६३-३६४ २/१८७-२०६ २६४ २ / ३८४ - ३१० २/३६९-४९८ 37 14 99 १६२१६४ १६४-१७० २६५ "0 २/२-१८ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश २/३४३-२५४४/४to-tot _२/२२३-२७०३/५६७-६११ ४/२६०-२६६ ४/४१७-४५० ६ / ६६-१०० २/३३८-३४२ १/८०८-८३१४/२०३३०८/४-२६/९४१-१४६ २/ २५०-१५८ ४/१४२-३२ ३६०-६९० ६/१५३ २/४०६-४१४ ३/६५७-६७८ ४/३६८-३७० ५/६२५- ६/१५७-१६४ |२ |७/२८-६४४ ६. मं. हनीय कर्म सत्य सम्बन्धी अल्पबहुत्वकी स्वव पर स्थानीय ओष व आदेश प्ररूपणा (म.म /पु.पु.) 8/426-480 I अनुभाग विषयक मूल प्र. उत्तर प्र. For Private & Personal Use Only २६६ 19 २८२ | २८४ | ४/९८५ ५/१८ २१६-२३१ २३६-२३० २४-२५२ २६६ | ३/२६४-१६८ ३/००१-६१६५/१३१-१४०५/४२६-४००/ ३/२२४-२२५४/१७७ - १६५ २/९६९ ५/५९०-४१३ ३/२४१-२४५ ४/२०४-०११ 12/28-118 מ 39 २८२ २८४ | प्रदेश विषयक लभ ५/१६०-१६८५/२२६-५३० | | | २६६ 99 99 उत्तर प्र २६१-२६४५ २७४ -२७५ २८१-२६४ २७१-२७३ ३०१-३२४ ३२६ ३३५ ।।। २८२ २८२ २८४ | २८४ www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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