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________________ अल्पबहुत्व २. ओघ व आदेश प्ररूपणाएँ गुण मुलभ १४६ गुणस्थान ६-७ में १५७(सम्यक्त्व उप. १६० 8-१० १२ मार्गणा अल्पबहुत्व कारण व विशेष सूत्र स्थान मार्गणागुण | अल्पबहुत्व | कारण व विशेष १४६ अक्षपक व अनुशमक ७ | स. गुणे मूलोघवत १८४ असयतोमें सम्य. उप स्तोक १४७ ६ | दुगुने क्षा. आ./असं.गुणे प्रथम पृथ्वी नरक में भी १४८ अस.गुणे गुणकार-पत्य/असं. तियंच भी सम्मिलित (संयतासंयतों में क्षा. | स्तोक पर्याप्त मनुष्य ही होते सुलभता सम्यक्त्व है तियंच नहीं १५० ३. सं. गुणे - अन्य स्थानोसे आय प./अ'गुणे ४ असं.गुणे | गुणकार-आ./अस आ./असं.गुणे पृथक् पृथक् परस्पर १२ अन्य स्थानोंसे आय १८५ गुणस्थान ६-७ में स्तोक अप्रशस्त वेदमें क्षायिक १५ गुणकार= घनांगुल सम्यक्त्व की दुर्लभता अस/ज.प्र. सं.गुणे १५३ गुणस्थान ४-५ में क्षा. स्तोक अन्प आय १८७ १५४ सम्यक्त्व सं.गुणे गुणकारा पाय/अस १८८ उपशमको में सम्य, | क्षा, स्तोक . . -आ./अस. स. गुणे १८६ चारित्र क्षा. १६ स्तोक |क्षा स गुणे १५८ ४. अपगत वेद-(प.ख ५/१,८/स.१९१-१९६) १५४ उपशमकोंमें सम्य। क्षा. | स्तोक १६१) उपशमक ह-१०/ स्तोक । पृथक् पृथक तुल्य (कुल उप. सं. गुणे ५४ जीव) १६० चारित्र स्तोक ११ । ऊपर तुल्य प्रवेशकी अपेक्षा १६१) क्षप. ' दुगुने संचय भी प्रवेशाधीन है २. पुरुष वेद-प.ख.४१.८/सू.१६२-१७४) १६३) क्षपक दुगुने __.. कुल १०८ जीव १६४ १६२ उपशमक । ऊपर तुल्य ८-६ | स्तोक परस्पर तुल्य कुल५४जीव १६५ अयोगी १६३क्षपक ८-६ दुगुणे , १०८, , सयोगी | प्रवेशकी अपेक्षा १६४ अक्षपक व अनुशमक ७ सं गुणे । मूल ओघवत् संगुणे । सचयकी अपेक्षा ६ दुगुने १०-कषाय मार्गणा ५ अस. गुणे गुणकार - पल्य/असं (तिर्यच भी) १. कषाय चतुष्ककी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा| गुणकार= आ./असं. (ष.ख.७/२,२९/सू.१४५-१४६) ३ | स. गुणे १४५ अकषायी (१४६ मान कषायी ४ असं. गुणे अनन्त गुणे क्रोध कषायी | = अंगु./असं.-ज.प्र. विशेषाधिक उपरोक्त+वह/आ.+असं १४८ माया कषायी गुणस्थान ४.७ में उप स्तोक । ओघवत (सम्यक्त्व क्षा. | अस. गुणे | गुणकार - पल्य/असं. १४६ लोभ कषायी २. कषाय चतुष्ककी अपेक्षा ओघ व आदेश प्ररूपणा» आ./अस. चारों कषाय-(ष.ख.५/१,८/सू.१६७-२११) १७२) उपशमकोंमें सम्य स्तोक १६७ उपशमक ८-६ | स्तोक | परस्पर तुल्य प्रवेशकी अपेक्षा संचय भी १७३/चारित्र प्रवेशाधीन है क्षप. सं.गुणे १६७ लपक ८-१ | सं. गुणे ३. नपुंसक वेद-(प.ख.४१,८/सू.१७५-१६०) १६६ उपशमक १० विशेषाधिक १७५ उपशमक 4-8 | स्तोक । परस्पर तुल्य ५ जीव २०० क्षपक १० सं. गुणे १७६ क्षपक 1 दुगुणे .., कुल १०जीव २०१अक्षपक व अनुपशमक ७ । गु. क्रोध,मान,माया.लो. १७७ अधपक व अनुशमक ७ सं गुणे मूलोधवत् १७८ ६ | दुगुने असं. गुणे गुणकार-पत्य/असं | ५ | अस, गुणे | गुणकारपल्य/असं. तियंच भी सम्मिलित " -आ./असं. गुणकार-आ./असं. सं.गुणे =स समय ३ | सं.गुणे -सं. समय २०६ ४ असं. गुणे , -आ/असं. ४ | असं. गुणे २०७ १ अनन्त गुणे १ | अनन्त गुणे| सर्व जीव राशि का २०८ उपरोक्त में सम्यक्त्व मूलोधवत अनन्त प्रथम वर्गमूल | क्षा. असं./सं.गुणे | गुणकार है। स्तोक १४० स. गुणे | स्तोक दुगुने १७६ २०३ २०४ २०५ " -आ./असं । उप. | स्तोक जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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