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________________ अल्पबहुत्व १४८ २. ओघ व मादेश प्ररूपणाएँ अवपमहत्व १२६/ १०६ दुगुणे १०० 9 - Norrn. सूत्र मार्गणा गुण अल्पबहुत्व कारण व विशेष मार्गणा कारण व विशेष स्थान | स्थान | १२५ अयोगी (सिद्ध) अनन्त गुणे ५. आहारक मिश्र काय योगकार्माण काय योग (ष.ख,४१,८/सू.१३५-१३६) १२० औदारिक मिश्र, असं गुणे गुणकार-अन्तमुहुत १३६ सम्यक्त्व क्षा. | स्तोक उपशम सम्यक्त्वमें १२८ औदारिक काय ,, सं गुणे । आहारक योग नहीं १२६/ काय योगी सा. । । विशेषाधिक चारों काय योगी होता ३. ओघ व आदेश प्ररूपणा ९३६ वे. | संगुणे १ पाँचौ मनोयोगी, पाँचों वचन योगी, काय योगी सा, ६. कार्मण काय योगऔदारिक काययोगी इस प्रकार १२ योग वाले - (ष.ख.५/१,८/सू.१३७--१४३) (ष ख.५/१,८/सू.१०५-१२१ १३ | स्तोक २ | अस गुणे | गुणकार-पत्य/असं, १०० उपशमक ..८-१० स्तोक परस्पर तुत्य संचय " -आ./असं. ऊपरतुल्य प्रवेश दोनो अपेक्षा १ | अनन्त गुणे १०७९क्षपक १४१ सम्यक्त्व उप, स्तोक वैक्रियक मिश्रवत् असं. ऊपर तुज्य १४२ क्षा सं. गुणे क्षायिक सम्यग्दृष्टियोका १०६ सयोग केवली प्रवेश अपेक्षा मरण नहीं होता। क्योंकि सं.गुणे । संचय अपेक्षा यदि देवोंसे मरण करे तो १११|| अनुपशमक मनुष्यों में असक्षा सम्य अक्षपक सामान्य का प्रसंग आ जायेगा। १२३ असं. गुणे | गुणकार-पत्य असं परन्तु तिर्य व मनुष्यों " = आ /असं. में असं क्षा. सम्य होते सं गुणे मनुष्य गतिवद नहीं । नरकसे मरकर असं.गुणे गुणकार-आ/असं देवोंमें जाते नहीं। अस गुणे मन-वचन योगकी अपेक्षा. वे. । असं गुणे । गुणकार-पन्य/असं. अनन्तगुणे काय व औ. काययोग 8. वेद मार्गणा१९८ सम्यक्त्व ४-७ | मूलोधवत् की अपेक्षा १. सामान्यकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा१२० चारित्र | उप स्तोक (ष ख.५/७/२,११/सूत्र १३०-१३३) १२१) |क्षप, । सं. गुणे स्तोक १३०| पुरुष १३१) स्त्री सं.गुणे २. औदारिक मिश्र योग १३२ अपगत अनन्त गुणे (ष.ख.४१,८/सू.१२२-१२७) १३३ नपुंसक १२२ सयोग केवली । १३ । स्तोक २. विशेषकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा१२३ असंयत सामान्य ४ | सं. गुणे (ष.ख.७/२,१९/सूत्र १३४-१४४) १२४ ॥ असं 'गुणे | गुणकार- पत्य/अस १३४ नपुसंक संज्ञो गर्भज। | स्तोक १२५ १ | अनन्त गुणे १३५ पुरुष , सं. गुणे १२६/ सम्यक्त्व क्षा, स्तोक दुर्लभता १२७/ वे. सं. गुणे । १३९, नपुंसक , सम्पू.प. ३. वैक्रियिक काय योग १३८ , ,, अप. असं गुणे गुणकार-आ./अर्स. (प.ख.५/१,८/सू. १२८) १३६ स्त्री, गर्भज भोग. १२८ सर्व भंग १-४ | देवगति- । - पुरुष , , भोग. ऊपर तुल्य ९४० नपुंसक असंज्ञी गर्भज सा. वद सं. गुणे १४१ पुरुष , ४. वैक्रियिक मिश्र योग १४२ स्त्री . (प.ख.५/१,८/सू.१२६--१३४) १४३, नपुंसक ,, सम्मू.प १२६/ सामान्य २ । स्तोक १४४' " " "अप, ' अस गुणे । गुणकार- आ./असं. असं गुणे | गुणकार-आ./असं | ३. तीनों वेदोकी पृथक पृथक ओघ व आदेश प्ररूपणागुणकार-अगु/असं+जप्र १. स्त्री वेद१३२/ सम्यक्त्व उप. स्तोक उपशम श्रेणी में मृत्यु (ष ख.४१-८/सूत्र १४४-१६१) बहुत कम होती है १४४ उपशमक ८-६ स्तोक परस्पर तुल्य क्षा. सं.गुणे वे. केवल १० जीव अस गुणे | गुणकार= पन्य/असं. १४५क्षपक - दुगुने , २० जीव जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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