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________________ १४७ मल्पबहुत्व २. ओघ व आदेश प्ररूपणाएं सत्र मार्गणा २५ २रा अधो प्रैवेयक १६ १ला. . १७| आरण अच्युत १८ आनत प्राणत १६/७वीं पृथिवी नरक ६ठी . . शतार-सहसार २२ शुक्र महाशुक्र २३. ५वीं पृथिवी नरक २४ लातव कापिष्ठ २६ ४थी पृथिवी नरक २६ ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर २७ ३री पृथिवी नरक समाहेन्द्र स्वर्ग २९| सनत्कुमार , ३० २री पृथिवी नरक ३१ मनुष्य अप. ssior wrior upt aar ३२ ईशान देव ३३ ईशान देवियाँ ३४ सौधर्म देव ३५ देवियाँ ३६ १ली पृथिवी नरक ३७ भवनवासी देव ३८ , देवियाँ ३६ चे तिर्य योनिमति गुण अल्पबहुत्व कारण व विशेष सूत्र मार्गणा स्पान | अन्पमहुत्व कारण व विशेष स्थान गुणकार-सं, समय १६ वायु काय वा प. असं गुणे -प्रतरागुल/असं. तेज , , अप. " , असं. लोक ५८ वन, अप्रति. प्रत्येक बा. अप. ५६ वन, प्रति, प्रत्येक असं गुणे गुणकार - (ज. श्रे.)३ बा अप. या निगोद श्रे) ३ | ६० पृथिवी काय आ.अप , - (ज श्रे) ४ ६१अप् काय वा, अप, असं, गुणे | गुणकार- अस, लोक ६२ वायु १० . . तेज काय सू. .. पृथिवी,, ,, विशेषाधिक उपरोक्त+वह/अस.लोक अप .. , ६६/ वायु , , तेज , सं गुणा पृथिवी,, , विशेषाधिक उपरोक्त+अस.लोक ६६ अप काय ,, ७०/ वायु , , .. ७१ अकायिक (सिद्ध) अनन्तगुणे ,, -अस समय ७२/वन साधारण वा पा ,,, ,, अप असं गुणा | गुणकार-असं. लोक .. " , सा. विशेषाधिक | पर्याप्त+अपर्याप्त ... -(ज श्रे) असं. गुणे गुणकार - अस, लोक २- अस. सं.गुणे " -सूच्यंगुल/अस. ७७ , , , सा विशेषाधिक | पर्याप्त + अपर्याप्त ३२ गुणी ७० वन साधारण सा. सूक्ष्म सा+बादर सा. सं. गुणे ७६ निगोद विशेष-वन, प्रति.३२ गुणी प्रत्येक बा.सा, असं गुणे - गुणकार-(घनौगुल)३] ८.योग मार्गणा " | (घनागुल)३ -स | १ सामान्यकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा३२ गुणी (ष.व.७/२,११/सू.१०७-११०) असं. गुणे |, - (अस ज श्रे) १०७ मनोयोगी सा. स्तोक देव सा./असं, (३-स) १०८ वचन । सं. गुणे स.गुणे अयोगी (सिद्ध) अनन्त गुणे ३२ गुणी ११० काय योगी सं. गुणे २ विशेषकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा३२ गुणी (ष. खं/७/२, ११/सू.१११-१२६) सं. गुणे १११/ आहारक मिश्र योग स्तोक विशेषाधिक उपरोक्त+बह-आ./अस. १९२ आहारक काय योग दुगुने | बै क्रियक मिश्र, असं. गुणे ११४ सत्य मनो योग सं. गुणे अर्स गुणे | गुणकार- आ./असं.. ११५ मृषा मनो योग |विशेषाधिक उपरोक्त+ह+आ./अस ११६ उभय .. ११७ अनुभय, ११८ मनोयोगी सा विशेषाधिक चारों मनोयोगी ५१६ सत्य वचन योग सं गुणे असं.गुणे गुणकार = पत्य/अस, १२० मृषा , , १२१] उभय .. . " -आ./अस. १२२/ बैंक्रियक काय योग (१२३ अनुभय वचन योग १२४/ वचन योगो सा. | विशेषाधिक | चारों वचन योगी (१०६/ ४० व्यतर देव ४१ , देवियाँ ४२ ज्योतिषी देव ४३ देवियाँ ४४ चतुरिन्द्रिय प. ४५ पंचेन्द्रिय प. ४६) द्वीन्द्रिय प. ४७त्रीन्द्रिय प. ४८ पंचेन्द्रिय अप ४ चतुरिन्द्रिय अप. ५० त्रीन्द्रिय अप द्वीन्द्रिय अप. ५२ वन. अप्रति, प्रत्येक बा, प. ५३ वन, प्रति प्रत्येक | बा.प.या निगोद ५४ पृथिवी बा प. ५० अप, काय बा.प. । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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