SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अल्पबहुत्व २ ओघ व आदेश प्ररूपणाएँ गुण सार्ण जी २.० विशेषाधिक सिद्ध पुद्गल द्रव्य अनन्त गुणे सूत्र | मार्गणा गुण अल्पबहुत्व कारण व विशेष अनागत काल | स्थान । अनन्त गुणा पुद्गल अनन्त सम्पूर्ण काल विशेषाधिक सर्व योग ३ । स गुणे १ सासादनसे सं.गुणा अलोकाकाश अनन्त गुणा कालxअनन्त । सचय काल सम्पूर्ण आकाश विशेषाधिक लोक । २ सासादनके उपरान्त उपशम सम्यक्त्व ही ३.जीव द्रव्यप्रमाण में ओघ प्ररूपणा प्राप्त होता है पर (ष.खं ५/१,८/सू १-२६) इसके उपरान्त उपनोट-प्रमाणवाले कोष्ठकमें सर्वत्र सत्र न.लिखे है। वहाँ यया स्थान | शम व वैदक सभ्यउस उस सूत्रकी टीका भी सम्मिलित जानना । कत्व तथा मिथ्यात्व । तीनो प्राप्त होते है। सूत्र मार्गणा | गुण अल्पबहुत्व । कारण व विशेष अत्पबहत्व ३ उपशमसे वेदक स्थान । सम्यग्दृष्टि स गुणे है। १. प्रवेशकी अपेक्षा ४ आ /अस गुणे। सम्य, मिथ्यात्वका उपशमक । सचय काल अन्तर्मुहूर्त अधिकसे अधिक ५४ है व इसका २ सागर है। ६ ऊपर तुल्या जीवोका प्रवेश हो | १४ १ सिद्धो से । सम्भव है अनन्त गुण वालाअनन्त से गुणित क्षपक १०८ तक जोबोका ३. सम्यकत्वमे संचयकी अपेक्षा ऊपर तुल्य प्रवेश सम्भव है असयत । उप स्तोक क्षा आ /अस गुणे अधिक सचय काल सुलभता स्तोक तियचोमें अभाव तथा सयतासयत दुर्लभ क्षा, पन्य/अस.गु- तियंचोमें उत्पत्ति २ सचयकी अपेक्षा आ/असं तियंचोमें उत्पत्ति तथा उपशमक गुणे सुलभ ८ स्तोक प्रवेशके अनुरूप ही | २१ ६ठा ७वॉ गुणस्थान ___ स्तोक अल्प सचय काल तथा ६ ऊपर तुल्य सचय होता है। कुल संयमकी दुलभता २६४ जीव संचित होने अधिक सचय काल | सम्भव है सुलभता २५ | ८-१०वाँ गुणस्थान उप स्तोक अल्प सचय काल तथा श्रेणीकी दुर्लभता क्षपक दुगुने कुल ५६८ जीव सचित २६ / क्षा, स. गुणे अधिक संचय काल चारित्र उप स्तोक अल्प संचय काल ऊपर तुल्य Jक्षा | स. गुणे ! अधिक सचय काल ४. गति मार्गणा १ पाँच गतिकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा (प.र्ख ७/२,१९/सू २-६) (मू.आ १२०७-१२०८) सं. गुणे ८८५०२ जीवोका संचय अक्षपक व अनुपशमक | स्तोक नारकी असं गुणे गुणकार-सूच्यगु./अस स गुणे २६६६६१०३ जीवोका ,. अस गुणे ५६३४६२०६ जीबोका , सिद्ध अनन्त गुणे गुणकार = भव्य/अनन्त पत्य/असं. मध्य लोकमे स्वम्भू ६ | तिर्यञ्च गुणे रमण पर्वतके परभागमें | २.८ गतिकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणाअवस्थान २ | आ/अस एक समयमे प्राप्त सयता (ए.ख ७/२,११/सू८-१३) गुणे संयतसे एक समय गत मनुष्यणी | स्तोक सासादन राशि अस | ६ मनुष्य अस. गुणे गुणकारज.श्रे./असं. | गुणी है। १० नारकी | ११| देव सं.गणे सं गुणा | मनुष्य देव | दुगुने जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy