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________________ Minute MINATION बातों ही बातों में मध्याह्न का समय हो गया। शेख सूरिजी से कहने लगा :| "महाराज ! भोजन का समय हो चुका है । यद्यपि आप जैसे निरीह महात्माओं को शरीर की बहुत कम दरकार रहती है तो भी जगत् की भलाई के लिये थोडा बहुत इस का पोषण करना आवश्यक है। इस लिये किसी उचित प्रदेश में बैठ कर आप भोजन कर लीजिये ।" शेख के कथन से सूरिजी पास ही में जो कर्णराजा का महल था उस में भोजन करने के लिये गये, जहां पर पहले ही कुछ साधु, गाँव में से भिक्षाचरी कर लाये थे । सूरिजी सदैव एक ही बार आहार लिया करते थे और वह भी प्रायः नीरस । अपने कार्य से निवृत्त हो कर बादशाह दरबार में आया और सूरिजी को | बुलाने के लिये अबुल फजल के पास नौकर को भेजा । अबुल-फजल सूरिमहाराज को साथ में ले कर दरबार में हाजर हुआ । सूरिजी को आते देख कर अकबर अपने सिंहासन से उठा और कुछ कदम सामने जा कर बडे भाव से प्रणाम किया । बादशाह के साथ उस के तीनों पुत्रों- शेख सलीम, मुराद और दानियाल ने भी तद्वत् नमस्कार किया । सूरिजी ने सब को शुभाशीषे दी। "गुरुजी ! चंगे तो हो " यह कह कर बादशाह ने सूरिजी का हाथ पकड़ा और अपने खास कमरे में ले गया | वहां पर कीमती गालिचे बिछे हुए थे इस लिये। सूरिजी ने उन पर पैर रखने से इनकार किया। बादशाह को इस बात पर आश्चर्य हुआ और उस का कारण पूछा । सूरिजी ने कहा कि - "महाराज ! शायद इन के नीचे कोई चूंटी वगैरह प्राणि हों तो मेरे पैर के वजन से वे दब कर मर जायें इस लिये हमारे शास्त्रों में मुनियों को ऐसे वस्त्राछन्न- प्रदेश पर पैर | रखने की मनाई की गई है !" बादशाह ने सोचा कि ये महात्मा- पुरुष हैं और शायद इन्हों ने कहीं इन बिछानों के नीचे अपनी ज्ञानदृष्टि से प्राणियों का अस्तित्व जान तो न लिया हो । क्यों कि नहीं तो ऐसी पक्की जमीन पर चूंटियों वगैरह का संभव ही कैसे हो सकता है ? अकबर ने गालिचे का एक शिरा उठाया तो दैवयोग से उस के नीचे बहुत सी चूंटियें नज़र पडी ! बादशाह • चङ्गा हो गुरुजीति वाक्यचतुरो हस्ते निजे तत्करम् कृत्वा सूरिवरान्निनाय सदनान्तर्वस्त्ररुद्धाङ्गणे । तावच्छ्रीगुरवस्तु पादकमलं नारोपयन्तस्तदा वस्त्राणामुपरीति भूमिपतिना पृष्टाः किमेतद् गुरो !। ___जगद्गुरु काव्य, १६८ । सालानालापानमा MHRIMAAMINIm सपनालाADEKETIN Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016007
Book TitleKruparaskosha
Original Sutra AuthorShantichandra Gani
AuthorJinvijay, Shilchandrasuri
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages96
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size8 MB
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