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________________ माता पुत्रः माता पुत्रः -. माता --- पुत्रः माता पुत्रः - माता २. दानस्वरूपवर्णनाधिकारे शालिभद्राख्यानकम् तो देवालयपडिमं भत्तिभरुन्भूयभूरिरोमंचो । न्हवइ विलेबइ पूयइ पणमइ संथवइ नरनाहो ॥ ९४ ॥ भद्दाए तओ भणियो भोयणभवणे गओ पुहइवालो । भुत्तो य सपरिवारो कयसम्माणो गओ राया ।। ९५ । चिट्ट य सालिभद्दो जा विसयपरम्मुह सुधम्ममई । ता धम्मघोससूरी समागओ नयरउज्जाणं ॥ ९६ ॥ तव्वंदणवडियाए विणिग्गओ रायपभिइपुरलोगो । आपुच्छिऊण जणणि तत्थ गओ सालिभद्दो वि ॥ ९७ ॥ वंदित्तु समुवविट्टाए रायपमुहाए सयलपरिसाए । भयवं पि महुरवाणीए देसणं काउमारद्धो ॥ ९८ ॥ जलहिजलगलियमुत्ताहलं व दुलहं लहित्तु मणुयत्तं । कायव्वा धम्ममई भवभयभीरूहिं भविएहिं ॥ ९९ ॥ इनिणिऊण संविग्गमाणसा देसणं मुणिंदस्स । पत्ता नियनियभवणे संविग्गो सालिभद्दो वि ॥ १०० ॥ गंतूणं नियभवणे जणणिं नमिऊण भणइ अंब ! मए । निसुओ जिणिदधम्मो गुट्ट, कयं वच्छ ! सा भइ अंब ! ममं अणुजाणह फबज्जामि त्ति नियुणिउ भद्दा | मुच्छानिमीलियच्छी धस त्ति धरणीयले पडिया ॥ चंदणजलसित्तंगी ससलिलवीयणयवीइया संती । उवलद्धचेयणा सा रुयमाणी भणिउमादत्ता ॥ १०३ । वच्छ ! तमेक्को पुत्तो अव्भहियो मज्झ जीवियस्सावि । मा गिण्ह ताव दिक्खं जाव अहं जाय ! जीवेमि ॥ १०४ ॥ सो भइ न अंब ! इमं नज्जद को जियइ ? अहब को मरइ ? । जम्हा न बाल- तरुणा थविरा वि जमम्स छुट्टति ॥ १०५ ॥ सा जंपइ जाय ! इमं नवजोव्वणसुंदरं सुरूवं च । निययसरीरं पालसु ता विविहविलासकरणेण ॥ १०६ ॥ सो आह अंत: स - किमि - पुरीसपरिपूरियम्स अथिरस्स । तवचरणमिमस्स फलं अंब ! असारम्स देहस्स ॥ १०७ ॥ ॥ उवूढजोवणभरा अहिणवअणुरायरंजिया जाया । बत्तीसमिमाहिं समं उवभुंजसु जाय ! विसयसुहं ॥ १०८ ॥ मुहमहुररसा परिणामदारुणा विसमविससमा विसया । ता अंब ! एरिसेसुं विसएमु बुहा न रज्जति ॥ १०९ ॥ रयण-मणि-कणय-रुप्पय-मुत्ताहलपमुहपउरधणरिद्धिं । भोगोवभोग-बंदियणदाणकज्जेहिं विलसेमु ॥ ११० ॥ राय - जल-जलण-तकंकर-वंतर- दायायसाहिया लच्छी । मणपरिणइ व्व अथिरा ता अंब ! इमीए को मोहो ॥। १११ ।। जाय ! करवालधाराचंक्रमणसमं सुदुक्करं चरणं । भूसयण - लोय - भिक्खऽन्नपाण- बंभव्वयाईहिं ॥। ११२ ।। विसयहपरवसाणं कायरपुरिसाण निव्विवेयाण । दुक्करमिह तव चरणं न कयाइ वि धीरपुरिसाण ॥ ११३ ॥ अमुणियदुहसम्भावो वच्छ ! तुमं केलिग भसुकुमालो । किह विसहिसि अइदुस्सह उवसग्ग- परीस हे घोरे ? ॥११४॥ नरयम्मि अंब ! असिपत्त-जंत- करवत्तकप्पणाइदुहे । सहिउं इह उवसग्गा "केत्तियमित्तं किलिस्संति ॥ ११५ ॥ १. कित्तियमेत्तं रं० । ५ 1 जइ जाय ! तए एवं कायव्वं वासराणि ता कइवि । अप्पाणं परिकम्मसु पच्छा तं कुणसु तव चरणं ॥ ११६ ॥ अवरोहेणं जणणीपयंपियं मन्निरं रा पासायं । गंतूण पणइणीणं पडिबोहत्थं इमं भइ ॥ ११७ ॥ निच्चं परभवचिंता नरेण नियमेण होइ कायव्वा । न हु विसयलालसेहिं हारेयवो मणुयजम्मो ॥ ११८ ॥ Jain Education International १०१ ॥ १०२ ॥ For Private Personal Use Only ३३ www.jainelibrary.org
SR No.016006
Book TitleAkhyanakmanikosha
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages504
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary & Story
File Size13 MB
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