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________________ प्रथम मोक्षगामी व विद्रोही-बाहुबली -प्रवीणचन्द छाबड़ा विद्वान् लेखक ने बाहुबली में कदम-कदम पर विद्रोह के दर्शन किये हैं। विनय जरूर साथ है। बाह्य सत्ताओं के प्रारोप के विरुद्ध विद्रोह बिना आत्मोपलब्धि सम्भव भी तो नहीं है। लेख महामस्तकाभिषेक महोत्सव से पूर्व की रचना है । -सम्पादक दिशानों में वासन्ती खिली है, कूसमोत्सव का के लिये क्या नहीं हो सकता यह स्पष्ट हया। सब तरफ प्रायोजन है। लाखों-लाख लोग सूदूर यह आश्चर्यकारी घटना है कि भगवान आदिनाथ दक्षिण के श्रवणवेलगोला में इस काल के प्रथम की तपोभूमि होते हुए, केवल ज्ञान की प्राप्ति के कामदेव (गौमटेश्वर) की वन्दना को पहुंच रहे हैं। बाद उनके ही पुत्रों भरत व बाहुबली में पहला हजार वर्ष से भगवान बाहबली की यह विशाल युद्ध हया और वह भी राज्य के लिये। भोगभूमि मति दिग-दिगन्त को सत्य-अहिंसा व वीतरागता से कर्मभूमि में प्रवेश युगान्तरकारी घटना थी, और का सन्देश दे रही है। विन्ध्यगिरी का भाग्य जागा- यही समय था, जब समाज के साथ राज्य व्यवस्था "सत्यम्, शिवमू, सुन्दरम्" पाषाण में मूर्तिमान का विधान होना था। युद्ध राज्य के लिए अनिवार्य हो उठा। करुणा, प्राशीष व कल्याण की त्रिवेणी शर्त है, यह मानकर भरत और बाहबली का प्रवाहित हो उठी । धरती ने चतुर्थ काल के प्रथम चिन्तन होता गया और दोनों ही युद्धरत हो गये। मोक्षगामी पुरुष के दर्शन किये। भगवान प्रादि- लेकिन, अभी भोग भूमि का, धर्म क्षेत्र नाथ प्रथम तीर्थङ्कर हुए, भरत चक्रवती और कायम था. आदिनाथ भगवान का अनुशासन कायम बाहुबली मुक्त पुरुष । था और इसलिये युद्धरत होते हुए भी दोनों अपने से निपट लेने को तत्पर थे। एलाचार्य मुनि श्री __ यह युग परिवर्तन का काल था, जब भोग विद्यानन्दजी के शब्दों में "भरत-बाहुबली का युद्ध भूमि से कर्मभूमि का प्रारम्भ हो चुका था। इस धरती पर पहला अहिंसक युद्ध रहा होगा।" कल्पवृक्ष विलुप्त हो कुके थे। आदिनाथ ने धरती को पहली बार धर्म, अर्थ और काम का पुरुषार्थ इतिहास की यह ऐसी अनुपम घटना है, जहां दिया और उन्होंने ही मोक्ष मार्ग का भी प्रतिपादन “अहं" चरम स्थिति पर है। भरत के सामने किया। उनके ही अनुशासन में प्रथम युद्ध की चक्रवर्ती होने का ऊंचा लक्ष्य है, बाहबली के भूमिका बनी, भावी का निरूपण हुआ और राज्य सामने उनका स्वत्व है, स्वाभिमान है और है 217 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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