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________________ दस लाख से अधिक तीर्थ यात्रियों का आगमन हुआ आश्चर्य हुआ उसने अपने गुरु नेमिचन्द्र से अपनी है। आज का यह श्रवणबेलगोल भक्ति और मुक्ति चिंता व्यक्त की। वहां भगवान बाहुबली मस्तकाका केन्द्र प्राचीनकाल में भी था। भिषेक महोत्सव में एक वृद्धा भी थोड़ा-सा दूध लेकर पहुंची । गुरु ने उसे पहचाना कि यही बुढ़िया सम्राट चन्द्रगुप्त और स्वामी भद्रबाहु के 1200 पहाड़ के नीचे रहती है और उस पहाड़ी को, इन्द्रवर्ष बाद दो यात्री उधर गये; एक थे तलवनपुर के गिरि को ही बाहुबली मानकर उसकी पूजा करती महामंत्री चामुण्डराय और दूसरे उनकी माता है । बुढ़िया ने ऊपर जाकर मूर्ति पर दूध डालते कालला देवी। उनकी भेंट उनके गुरु नेमिचन्द्र से हुए कहा "बाहुबली स्वामी ! यह तुच्छ भेंट स्वीकार हुई जिनके सामने उन्होंने अपनी समस्या व्यक्त की करो।" देखते-देखते मूर्ति दूध से नहा गई। कि वे भरत द्वारा स्थापित बाहुबली की मूर्ति की खोज में निकले हैं । गुरु को यह बात कुछ अटपटी- इसी मूर्ति के महामस्तकाभिषेक समारोह की सी, विचित्र-सी लगी कि पोदनपुर में स्थापित मूर्ति तैयारी गतवर्ष 29 सितम्बर को जनमंगल महायहां सुदूर दक्षिण में भला कैसे मिल सकती है। कलश के प्रवर्तन से शुरू की गई थी। 124 स्थानों कालला देवी ने चन्द्रगिरि पर चढ़कर प्रार्थना की, का भ्रमण करते हुए 14 हजार कि.मी. की लम्बी कविवर पंपरचित "पादिपुराण" का पाठ किया यात्रा पूर्ण कर यह मंगल महाकलश 19 फरवरी. और कवि द्वारा चित्रित बाहुबली की जीवन-गाथा 81 को श्रवणबेलगोल पहुंचा और वहीं यह स्थायी के आधार पर उसके मनः चक्षयों के सामने रूप से स्थापित किया गया । यह मंगलकलश सौहार्द अयोध्या-सम्राट ऋषभदेव, नीलांजना का नृत्य, और भाईचारे का प्रतीक था । सकल भारत के राजा का वैभव-त्याग, भरत-बाहुबली का युद्ध, राज्यों में इसका भ्रमण हुआ, इसने उत्तरापथ और बाहबली की घोर तपस्या ग्रादि सभी कुछ चलचित्र दक्षिणापथ को मिलाने का काम किया। उत्तर के समान प्रा गये। आज कालला देवी को उसी प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, बिहार बंगाल, गुजरात, बाहुबली की मूर्ति के दर्शन करना अभीष्ट था। मध्यप्रदेश, मद्रास केरल सभी जगह वह पहुंचा, लोगों ने उसके प्रति अपनी श्रद्धा-भक्ति व्यक्त की। ___ उधर चामुण्ड महामंत्री को स्वप्न में स्वामी इस प्रकार इसने राष्ट्रीय एकता की भावना को भद्रबाहु ने ज्ञान दिया कि गुफा के सामने इन्द्रगिरि उद्बुद्ध किया । सभी धर्मों-सम्प्रदायों के लोगों ने की ओर मुंह करके खड़े हो जानो और सामने की इसके प्रति अपना आदर-सम्मान व्यक्त किया, चट्टान पर तीर मारो तो तुरन्त बाहुबली के दर्शन इसका हार्दिक स्वागत किया, बिना किसी जातीय होंगे । चामुण्ड ने ऐसा ही किया, तीर लगते ही भेदभाव के । इस प्रकार यह जनमंगल महाकलश मूर्ति प्रकट हो गई । मां-बेटे बहुत खुश हुए, उनकी भारत की सेक्यूलर भावना का, धार्मिक सहिष्णुता चिरकाल की साध पूरी हुई । का. सर्वधर्मसमभाव का सिंबल (Symbal) था। इसका निर्माण, इन्दौर के मुहम्मद अजीज ने किया महामंत्री चामुण्ड ने मूर्ति की स्थापना का, और इसके वाहन की साजसज्जा में अब्दुल हमीद उसके अभिषेक का समारोह आयोजित किया । अब ने अपना कलात्मक योग दिया। 144 किलो वजन चाममण्ड को अपनी इस भारी सफलता पर काफी के इस मंगलकलश का डाइमीटर 6 फूट और गर्व-धमंड हुआ। जब मूर्ति का दूध से अभिषेक ऊंचाई साढ़े छह फुट थी। ताम्रकलश इस महोकिया जो दूध मूर्ति के नीचे तक नहीं पहुंचा, उसे त्सव का प्रमुख आकर्षण था । इस मंगलकलश के 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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