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________________ करने के उद्देश्य से चोरी की जाने के कारण प्रदत्त वस्तुओं के प्रति मूर्च्छा या ममत्व भाव आदि विद्यमान रहता है। अतः चोरी परिग्रह भी है | वैसे परिग्रह के प्रभाव क्षेत्र में दत्त एवं प्रदत्त दोनों प्रकार की वस्तुए आने के कारण परिग्रह का क्षेत्र अत्यंत व्यापक हैं । इस प्रकार चोरी करने वाला हिंसा एवं एवं परिग्रह के पाप का भी भागी बनता है । सामान्यतः धन सम्पत्ति के प्रति सामान्य राग होने के कारण वह विधि सम्मत ढंग से अर्जित की जाती है । किन्तु जब उसके प्रति व्यक्ति का तीव्र राग होता हैं तब अन्याय पूर्वक चोरी प्रादि का सहारा लेकर प्रदत्त वस्तु को ग्रहण करता है । चोरी एक व्यक्तिगत बुराई तो है ही क्योंकि दूसरे व्यक्ति के स्वत्वाधिकार की वस्तु छीनने, अपहरण करने या लेने के कारण प्रात्मा अपने ज्ञाता - दृष्टा रूप अविकार स्वभाव से च्युत होकर अन्य वस्तुओं में ममत्व कर उनसे सुख की प्राशा करता है, किन्तु यह एक महान सामाजिक बुराई भी है। धन सम्पत्ति आदि बाह्य वस्तुओं की जिन्हें व्यक्ति अपनी आवश्यकता एवं इच्छानुसार संग्रह करता है, बाह्य प्रारण की संज्ञा दी जाती है। इन वस्तुओं के प्रति व्यक्ति का इतना अधिक अनु राग एवं ममत्व रहता है कि इनके वियोग में प्रायः प्राण त्याग जैसी घटनाएं भी कर बैठता है। एक सुई के गुमने मात्र पर हम व्यग्र एवं ग्राकुलित होजाते हैं तब ऐसी स्थिति में किसी व्यक्ति को कोइ अन्य जब बल, दबाव या छल द्वारा उसकी सम्पत्ति या अधिकार से वंचित करता हैं तब उस व्यक्ति की भावनात्मक स्थिति क्या होती होगी ? इसका अनुभव तो मुक्त भोगी ही कर सकता है। भौतिक वस्तुयें बाह्य प्राण होने के कारण इससे सामाजिक सम्बन्धों पर भी अत्यंत विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे सामाजिक असुरक्षा एवं अशांति का जन्म होता है। पीड़ित या प्रभावित Jain Education International व्यक्ति का आचरण असामान्य हो जाने के कारण वह अनायास बदले की भावना एवं कुन्ठानों से ग्रसित होकर निर्बलों के प्रति अन्यायी एवं क्रूर हो जाता है जिससे समाज का प्रत्येक वर्ग प्रभावित होता है। पूँजीवादी एवं शोषण आज के युग की एक प्रमुख समस्या है । वर्ग संघर्ष के नारों की आड़ में मानवता की हत्या क्रूरता एवं पाशविकता से की गयी है। पाश्चात्य जगत प्राणियों / पशुद्मों के प्रति सम्वेदनशील होने का अभिनय तो करता रहा किन्तु मानव जाति के प्रति कठोर, निर्भय एव असहिष्णु हो गया । रूस, अमेरिका, फांस एवं चीन की रक्त क्रांतियां तथा विश्व के दो महायुद्ध इस बात के प्रमाण हैं कि पश्चिम में मानव जाति के साथ कीड़ा-मकोडा जैसा व्यवहार किया गया है। मानव की चीत्कार एवं क्रंदन के रक्तिम घिनौने प्रमाण इतिहास एवं साहित्य के पृष्ठों को कलं कित कर रहे हैं । पूंजीवाद शोषण की प्रक्रिया पर आधारित अर्थव्यवस्था है जिसमें साधन सम्पन्न वर्ग द्वारा विपन्नों के भौतिक अधिकारों का इस ढंग से अपहरण किया जाता है जिससे कालांतर में समाज स्वतः दो वर्गों में विभक्त हो जाता है जो सामाजिक असमानता एवं वर्ग संघर्ष को जन्म देता है । यह सामाजिक असमानता दूसरे व्यक्ति की सम्पत्ति या अधिकारों की चोरी एवं भौतिक जड़ वस्तुनों के प्रति ममत्व या प्रासक्ति पर आधारित है । अतएव, अंततः चोरी का भाव ही सामाजिक विषमता, शोषण एवं प्रशांति का कारण है । चोरी के भाव का त्याग किए बिना धार्मिक एवं नैतिक जीवन व्यतीत नहीं किया जा सकता है। सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन में भी अचौर्यव्रत उतना ही उपादेय है जितना व्यक्तिगत एवं धार्मिक जीवन में यही कारण है कि तीर्थंकर महावीर । ने एवं उनके पूर्ववर्ती तीर्थंकरों ने आत्म कल्याण 1/56 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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