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________________ भगवान महावीर का मानवतावाद 0 प्रो० अशोक कुमार, एम. ए. महावीर का मानवतावाद पश्चिमी मानवतावाद की भांति अज्ञेयवादी तथा जड़वादी नहीं है। उसके अनुसार मानव जैसा बोता है वैसा काटता है। वह स्ववादी है पर स्वार्थवादी नहीं है । अहिंसा और वैयावृत्त के व्यवहार के बीच मानव की आध्यात्मिक प्रगति के कदम बढ़ते हैं । लेखक के सुलझे विचार पाठकों को अवश्य ही प्रात्म विश्वास और श्रम की प्रेरणा देंगे। कान्ट के 'साध्यों का साम्राज्य' को महावीर में पढ़ना ठीक ही है किन्तु उसका विस्तार महावीर जीव मात्र तक कर देते हैं। स्वोपलाब्ध में मानव जीवन की महत्ता महावीर अवश्य स्वीकार करते हैं। - सम्पादक मानववाद वह धर्म हैं जो ईश्वर के स्थान पर द्रव्यं) पर्याय परिवर्तनशील और नाशवान है मानवीय स्वार्थ, महिमा एवं गरिमा पर अधिक बल लेकिन गुण म्थायी हैं, अतएव प्रतीति बिना सत्ता देता है । पाश्चात्य मानववाद प्रत्यक्षवादी, अज्ञेय- के और सत्ता बिना प्रतीति के नहीं हो सकती है। वादी. मानव-केन्द्रित नीति पर बल देने वाला एवं इस प्रकार समकालीन मानववादियों से आगे जाकर मानव कल्याण का पोषक है। जैन धर्म हिन्दू धर्म जैन धर्म प्रतीति और सत्ता, दोनों के बीच समन्वय की अपेक्षा प्राधुनिक पाश्चात मानववाद के अधिक करता हैं और मानवता को तात्विक आधार प्रदान निकट है, क्योंकि यह अनीश्वर वादी है और करता है। ईश्वर से अधिक मानव की महिमा और गरिमा पर जोर देता हैं। यद्यपि पाश्चात्य मानववाद की यद्यपि जैन धर्म तात्विक सत्ताको मानता है, की भांति यह मात्र प्रतीति तक ही सीमित नहीं फिर भी यह जगत की प्रकृतिवादी व्याख्या करता रहता है बल्कि प्रतीति से परे जाकर सत्ता का भी है। आधुनिक मानववाद की भांति यह भी अनुसंधान करता हैं, क्योंकि यह दोनों के बीच "प्रकृतिवादी, लोकवादी, कर्मवादी और क्रियावादी समन्वय लाना चाहता है, और परिवर्तन एवं है। जब कि समकालीन पाश्चात्य मानववाद स्थायित्व दोनों को सत्य का लक्षण मानता हैं। का झुकाव भी भौतिकवाद की ओर है । जैन दर्शन (उत्पाद व्यय ध्रौव्य युक्तं सत्) 1 सत्, गुण और भूत को उचित महत्व देते हुए आत्मा की सत्ता और पर्याय दोनों से युक्त हैं (गुण पर्याय वद् 2. तत्वार्थ सूत्र 5/38 1. तत्वार्थ सूत्र, 5/30 3. आचारांग सूत्र 1/5 1/22 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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