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________________ पहले जो श्वासोश्वास की संख्या नियत थी, उसी एक-एक को सामने लाते जाइये । जैसे भगवान नगह अब नवकार मंत्र व लोगस्स का स्मरण जय महावीर का दीक्षा-महोत्सव हो रहा है। हजारों में ध्यान प्रारम्भ कर लिया गया। जो अभी केवल नर-नारी उत्सव देखने के लिए सड़कों, मकानों व प्रेक्षा-ध्यान के रूप में चालू किया गया है। बौद्ध छतों पर बैठे हुए भगवान् की ओर मन को एकाग्र ध्यान प्रणाली में वह विपश्यना के नाम से प्रसिद्ध करके टकटकी लगाये निहार रहे हैं। मन्द गति हैं । श्री सत्यनारायनजी गोयन उसके प्रशिक्षण में से धीरे-धीरे जुलूस आगे बढ़ता जा रहा है । पूर्ण प्रयत्नशील हैं। मुट्ठियां भर-भर के मुद्राएं आदि उछाल रहे हैं । ... मेरी राय में प्रत्येक जैनी को महावीर ध्यान प्रभू के ऊपर लोग पुष्प बरसा रहे हैं। आगे चल की प्रारम्भिक व सरल विधि को अपनाते हुए. कर शहर के बाहर उद्यान में वक्ष के नीचे प्रभू प्रेक्षाध्ययान की ओर गतिशील होना चाहिये । भ० सर्ववस्त्र अलंकारों को त्याग करके पंचमूष्ठि लोंच महावीर हमारे सबसे निकटवर्ती तीर्थकर व परो- कर रहे हैं। चारों और से जय जयकार बोली जा पकारी हैं। अत: सर्वप्रथम उन्हीं के नाम स्मरण रही है। कुटुम्बी जनों व भावुक व्यक्तियों की के साथ, उन्हीं के ध्यान करने के विधि प्रारम्भ प्रांखों में अश्रुधारा बह रही है । प्रभु निश्चल हैं। कर देनी चाहिये । उस विधि का कूछ रूप इस उस दृश्य पर ध्यान टिकाइये । प्रकार हो सकता है। विशेष चितन करने पर अन्य विधि भी खोजी एवं अपनायी जा सकती हैं। यह __इसके बाद महावीर बिहार करके शूल-पारिण यक्ष के मन्दिर के आगे पहुंचते हैं। पुजारी से वहां सुगम विधि है, अतः सभी अपना सकते हैं। रात भर रहने की आज्ञा मांगते हैं । पुजारी मना ... भ० महावीर के किसी भव्य एवं आकर्षक करता है क्योंकि यक्ष कर हैं। वहाँ रात भर मृति चित्र के सामने उन्हीं की तरह खड़े होकर रहना मौत को निमन्त्रण देना हैं, फिर भी महावीर एवं पद्मासन या सुखासन में बैठकर पहले कुछ देर पूजारी को समझा कर उसी में टिकते हैं। यक्ष के लिये उनकी प्रांखों से हमारी प्रांखों को मिला नाना प्रकार के भय हि नाना प्रकार के भय दिखाता है। मरणान्तिक कष्ट के देखते रहे अर्थात् थोड़े समय के लिये त्राटक देता है। पर महावीर अविचल व शांत रहते हैं। करें। उनकी शांत व भव्य-मूर्ति पर अपनी प्रांखों यक्ष पर तनिक भी यक्ष पर तनिक भी रोष-द्वेष नहीं करते हैं। इसका नहीं को केन्द्रित करें। जब तक प्रांखों में थकान अनुभव प्रभाव यक्ष पर पड़ता है। अन्त में वह क्षमा न हो, पानी न पावे तब तक एकटक ध्यान लगाय याचना करते हए भक्त बन जाता है। इस प्रसंग में भ. महावीर के समत्व निश्चलता पर विशेष , भगवान् महावीर के जीवन प्रसंग बहुत चिंतन करना चाहिये । इससे हमारे ध्यान में ही प्रेरणादायक व उद्बोधक हैं। अतः साधना स्थिरता पायेगी। इसी तरह इसके बाद क्रमश: काल के एक एक प्रसंग के काल्पनिक चित्र, ग्वालिये के उपसर्ग, चण्ड कौशिक, कानों में कीले मनोभूमिका के सामने उपस्थित करते हुए, अपने ठोकने, ब्यन्तरी, संगमदेव आदि एक एक अनुकूल मन को वहाँ कुछ समय के लिये टिकाये रखने का प्रतिकूल उपसर्ग-परिषह के प्रसंग मनोभूमिका पर प्रयत्न किया जाय । यह महावीर के ध्यान की उतारते रहिये और उन पर मन को अधिकाधिक प्राथमिकता व सरल विधि है । बैठे हुए, खड़े हुए, समय तक केन्द्रित रखने का प्रयत्न करिये । इससे सोते हए मांखों को बन्द करके भगवान् महावीर बाहर की ओर भटकता हुआ चंचल मन शान्त की दीक्षा से लेकर केवल ज्ञान तक के प्रसंगों में से और स्थिर हो जायेगा। चित्त में परम शान्ति और 1/14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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