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________________ मर्यादा पुरुषोतम राम की रानी सीता कहां प्राणों का विसर्जन कर देता है। हमें संसार के तो राजमहलों के सुख का उपभोग करती और प्राकर्षणों को ही प्रमुख मानकर विवेक शून्य होकर कहां पैदल चलकर, जंगली जानवरों के मध्य अपना अनिष्ट नहीं करना चाहिये बल्कि भगवान निवास करती है, यह सब कर्मों का ही फल है। महावीर द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों का अनुसरल कर्मों के कारण ही भगवान महावीर ने अनेक कष्ट । करना चाहिये जिससे शुद्ध, निरंजन, निविकार उठाये थे। सिद्ध स्वरूप परमात्म तत्व की प्राप्ति सहज ही की जा सकती है। क्यों कि :कर्म किसी को नहीं छोड़ते चाहे हम देश का वरा करने वाले व्यक्ति का साथ छोड़ दे; लेकिन मानव का उत्थान पतन, कर्मों की अधीनता भव भव तक बनी रहती है। सब अन्तर्मन पर अवलम्बित । भगवान महावीर ने कहा है कि हमें इस संसार निजका पर का हित और अहित में परागलोलुपी भ्रमर के समान नहीं बनना ___ सब मात्र कर्मो पर आधारित । चाहिये जो बिना सोचे समझे ग्रासक्त होकर अपने _ नमो नमः महावीर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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