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________________ के अवसर पर श्राये साधुजनों की सेवा के लिए समिति के कार्यकर्ता गये थे । श्री सुशील जी के नेतृत्व में अनेक त्यागी वृतियों का वैयावृत्य किया गया । महामस्तकाभिषेक के अवसर पर आयोजित विद्वद् सभा में श्री सुशील जी को उनकी सेवाओं के लिए सम्मानित भी किया गया। जयपुर जैन समाज को इस पर गर्व है । आदर्श नगर में दि० जैन मुलतानी भाइयों के द्वारा संचालित - श्री महावीर कल्याण केन्द्र भी निःशुल्क चिकित्सा कर रहा हैं । इस केन्द्र पर श्री सुशील जी के प्रमुख शिष्य श्री अशोक गोवा मुख्य चिकित्सक हैं। श्री सुशील जी भी सप्ताह में दो दिन वहां जाकर निःशुल्क परामर्श देते हैं । (ख) विद्या संस्थान - (i) मालवा मेवाड़ के मध्य में एक सुन्दर मंगरी है प्रतापगढ़ | इस छोटी सी नगरी में श्री भट्टारक यशकीर्ति जी की प्रेरणा से वहां के समाज ने क्षेत्रीय आवश्यकतायों को देखते हुए, समाज के बालकों में सुसंस्कारों को पनपाने की भावना से भट्टा. यशकीर्ति दि०जैन छात्रावास और भटा०-यशकीर्ति दि० जैन माध्यमिक विद्यालय की स्थापना की। दोनों ही संस्थायें लगभग 40 वर्ष से समाज की अच्छी सेवा कर रही हैं । सहयोगी संस्थाओं के रूप में रमण बहिन दि० जैन कन्या शाला, व्यायाम शाला और औषधालय भी जन सेवा में रत हैं । धार्मिक संस्कारों के लिए, साधना के स्थल के रूप में श्री सीमंधर जिनालय का भी वहां के समाज ने निर्माण कराया है । प्रतापगढ़ के समाज की गतिविधियां स्तुत्य हैं । (ii) राजस्थान के दक्षिणी पूर्वी प्रादिवासी क्षेत्र में श्री जवाहर विद्यापीठ एक महत्वपूर्ण शिक्षण संस्था है । गत 40 वर्षों से समाज की Jain Education International यह संस्था सेवा कर रही है। इस शिक्षण संस्था में प्राथमिक स्तर से कालेज स्तर तक के शिक्षण की समुचित व्यवस्था है। महिलाओं को विभिन्न गृह उद्योगों का प्रशिक्षण देने के निमित्त एक महिला उद्योगशाला है । श्रासपास के ग्रामीण क्षेत्रों से ग्राने वाले छात्रों के लिए एक छात्रावास है । (iii) उदयपुर विश्व विद्यालय में, भगवान महावीर के 2500 वें निर्वाण महोत्सव पर उदयपुर व जयपुर के कार्यकर्त्ताओं द्वारा, श्री हिम्मतसिंहजी सरूपरिया, श्री फतेहलालजी हिंगढ़, श्री भंवरलाल जी कोठारी आदि दानी महानुभावों के सहयोग से डा० ए० एन० उपाध्याय के परामर्श से "जैन विद्या एवं प्राकृत विभाग की 1978 में स्थापना की गई । इस विभाग की प्रगति के लिए डा० के० सी० सौगाणी सा० का निर्देशन व उनका सक्रिय सहयोग प्रशंसनीय है । विभाग ने माध्यमिक स्तर से लेकर बी० ए० तक के पाठ्क्रम में प्राकृत विषय को रखवाने में प्रशंसनीय कार्य किया है । प्राकृत एवं जैन विद्या के शोध कार्य के लिए विभाग पूर्ण सुविधाएं प्रदान करता है। विभाग के संदर्भ कक्ष में शोधार्थियों के लिए जैन विद्या एवं प्राकृत विषय पर अनेक दुर्लभ पुस्तकें उपलब्ध हैं । अपभ्रंश शोध योजना भी विभाग के विचाराधीन है । इस विभाग के सारे कार्यकलापों की देखभाल, विभाग के अध्यक्ष डा० प्रेम सुमन जैन कर रहे हैं, जो स्वयं जैन विद्या एवं प्राकृत के ख्याति प्राप्त विद्वान हैं । (ग) साधना के प्रायतन : पिलानी - शिक्षा के क्षेत्र में एक जाना पहचाना नाम है, सैकड़ों जैन विद्यार्थी भी वहां अध्ययन करते 4/18 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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