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________________ तथा संसार में परिभ्रमण करती है। बंधादि तो को आधिदैविक, आधिभौतिक, एवं प्राध्यात्मिक पुरुष में प्रकृति के संयोग से कहे जाते है। इसलिए दुःखों से मुक्ति मिल जाती है। इसके बाद पुरुष प्रकृति के वियोग का नाम मोक्ष है। वियोग से पूर्ण रहित हो जाता है । इस वियोग से रहित अवस्था का नाम ही योग दर्शन में 'कैवल्य' . सांख्य तत्त्व कौमुदी की यह कारिका दृष्टव्य (मोक्ष) है । ऐसी अवस्था में पुरुष स्वच्छ ज्योतिर्मय है, जिसमें पुरुष के कैवल्य (मोक्ष) की सिद्धि की स्वरूप को प्राप्त हो जाता है। गई है न्यायदर्शन में मोक्षसंघातपरार्थत्वात् त्रिगुणादि विपर्ययादधिष्ठानात् । पुरुषोऽस्ति भोक्तृभावात् कैवल्यार्थं प्रवृतेश्च ।।17।। ____ जीवात्मा जब दुःख और दुःख के कारणों से रहित हो जाता है, तब वही जीवात्मा मुक्त कहइस कारिका पर विचार करने पर 'मुक्त' के लाने लगता है। इस मुक्त अवस्था (दुःख की पूर्ण निम्न अवयव सामने आते हैं-अनाश्चितत्व, अलि निवृत्ति) को अपवर्ग (मोक्ष) कहा है । शरीर, मनस् गत्व, निखयवत्व, स्वतन्त्रत्व, अत्रिगुणत्व, विवेकित्व, को लेकर छः इन्द्रिया तथा इन्द्रियों के छः रूप, रस प्रविषयत्व, असामान्यत्व, चेतनत्व, अप्रसवमित्व, प्रादि विषय एवं उनके रूपज्ञान, रसज्ञान प्रादि छः साक्षित्व, कैवल्य, माध्यस्थ, औदासीन्य, दृष्टुत्व ज्ञान तथा सुख-दुःख का प्रात्यन्तिक नष्ट हो जाने तथा अकर्तृत्व, ये सभी धर्म निर्लिप्त पुरुष में हैं। का नाम मोक्ष है । जैसा न्यायसूत्र में कहा है-- योगदर्शन में मोक्ष "प्रात्यन्तिको दुःखवियोगोऽपवर्गः।" 'चित्तवृत्तिनिरोधः योगः' चित्तवृत्ति के निरोध प्रर्थात् आत्यंतिक दुःख के वियोग का नाम का नाम मोक्ष है। इसी का नाम कैवल्य या मुक्ति अपवर्ग (मोक्ष) है। आत्यंतिक दुःख की निवृत्ति (मोक्ष) नाम है । अभ्यास के द्वारा संस्कारों का क्षय होने के साथ भविष्य के दुःखों की निवृत्ति भी हो हो जाने से प्रात्यंतिक लय में प्राप्त होकर 'विदेह- जाती है । इस अपवर्ग अवस्था में प्रात्मा अपने बुद्धि कैवल्य' को प्राप्त करता है। निरोध समाधि में आदि सभी विशेष गुणों से शून्य होकर शुद्ध प्रात्मलय । लय हो जाना ही योगियों की मुक्ति है। स्वरूप में स्थित हो जाता है। इस संसार में सुखवृत्तियों के निरोध से तत्त्वज्ञान होता है और दुःख। दुःख को पृथक कर त्याग करना असम्भव है। प्रतः की प्रात्यन्तिकी निवृत्ति हो जाती है। इसलिए यह । दुःख छोड़ने की इच्छा से दु खमिश्रित सुख को भी कहा जा सकता है कि दुःख की प्रात्यंतिकी निवृत्ति छोड़ना ही पड़ता है । 'तस्मात्परमपुरुषार्थोऽपवर्ग:।' ही मोक्ष है । मुक्ति के विषय में पातज्जलि ने यह सच तत्त्व ज्ञानादवाप्यते (न्यायक पृ. 8) अर्थात् बात कही है इस संसार का उच्छेद करना परमपुरुषार्थ है, यही सत्त्वपुरुषंयोः शुद्धिसाभ्ये कैवल्यमिति ।" अपवर्ग है। इस अपवर्ग की प्राप्ति तत्त्वज्ञान से होती है। अर्थात् विवेकज ज्ञान प्राप्त होने पर बुद्विसत्त्व , वैशेषिक दर्शन में मोक्षतथा पुरुष की जो शुद्धि एवं सादृश्य है, वही कैवल्य ' है । विवेकज्ञान उत्पन्न होते ही क्लेशों के कारण "बुद्धिसुखदुःखेच्छाधर्माधर्मप्रयत्नभानाख्य संस्कारनष्ट हो जाते हैं । इन सबका लय हो जाने से पुरुष द्वेषाणां नवानामात्मविशेषगुणानामुच्छेदो मोक्षः ।" ( 3/55) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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