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________________ सांस्कृतिक, एवं भाषागत अध्ययन, रस, अलंकार, नगरों के शास्त्र भण्डारों की खोज होना आवश्यक छन्द की दृष्टि से काव्यों का महत्य मादि विविध हैं। इन भंडारों में सम्भवतः अपभ्रंश की कुछ और रूपों में काव्यों का अध्ययन होना शेष हैं। वास्तव भी कृतियां संग्रहीत हों जिनकी प्राप्ति के पश्चात में अपभ्रश साहित्य का जितना गहन अध्ययन शोध के और भी नये क्षेत्र खुल सकते हैं। होगा, भारतीय साहित्य में जैन साहित्य को उतना ही अधिक स्थान प्राप्त होगा। अपभ्रंश साहित्य के प्रकाशन एवं उस पर शोध कार्य की अत्यधिक आवश्यकता हैं। एक एक . यहाँ मैं एक बात की और आपका ध्यान ग्रन्थ के सम्पादन को लेकर एक एक शोध प्रबन्ध प्राकृष्ट करना चाहता हूं कि अभी तक राजस्थान, लिखा जा सकता है । क्योंकि अपभ्रंश हिन्दी की मध्य प्रदेश, देहली एवं उत्तर प्रदेश के कुछ ग्रन्था- पूर्ववर्ती जननी मानी जाती है इसलिये विश्वगारों का भी पूरा सूचीकरण का कार्य नहीं हो सका विद्यालयों के प्राकृत, संस्कृत, एवं हिन्दी विभागों में हैं। राजस्थान का प्रसिद्ध ग्रंथागार नागौर का अपभ्रंश भाषा साहित्य पर शोध कार्य हो सकता भट्टारकीय शास्त्र भण्डार, कुचामन एवं अन्य कुछ हैं। शोध के लिये कतिपय विषय 1. महा कवि स्वयम्भू व्यक्तित्व एवं कृतित्व 2. रिठुनेमिचरिउ का सांस्कृतिक अध्ययन 3. पउमचरिय का सांस्कृतिक अध्ययन 4. अपभ्रंश का प्रथम और अन्तिम महाकाव्य 5. अपभ्रंश के प्रमुख महाकवि 6. अपभ्रश के प्रतिनिधि कवि और उनके काव्य 7. महाकवि पदमकीति-व्यक्तित्व एवं कृतित्व 8. हरिषेण की धम्म परिक्खा का पालोचनात्मक अध्ययन 9. वीर एवं शृंगार रस प्रधान जम्बूसामि चरिउ का सांस्कृतिक अध्ययन 10. महाकवि यशःकीर्ति-व्यक्तित्व एवं कृतित्व 11. महाकवि धवल के हरिवंशपुराण का सांस्कृतिक अध्ययन 12. अपभ्रंश का ऐतिहासिक काव्य-अमरसेन चरित 13. महाकवि श्रुतकीर्ति की अपभ्रंश साहित्य को देन 14. अपभ्रंश के प्रबन्ध काव्य 15. अपभ्रश के खण्ड काव्य 16. महाकवि नयनन्दि-व्यक्तित्व एवं कृतित्व 17. गरिण देवसेन के सुलोचना चरित का सांस्कृतिक अध्ययन 18. हिन्दी भाषा के विकास में अपभश की देन 9. महाकवि धनलाल एवं उनका अपभ्रंश साहित्य ( 3/34) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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