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________________ अध्यक्षीय जैन दर्शन, जैन संस्कृति और जैन साहित्य की धारा शाश्वत रूप से प्रवाहमान रहे, इसलिए भगवान महावीर के पाबन 2579 वीं जयन्ती के शुभावसर पर स्मारिका का यह प्रकाशन, उस निरन्तर प्रवाह में एक धारा के रूप में मिलकर उसे स्थायित्व प्रदान करने की दिशा में एक प्रयत्न है। लगभग 2600 वर्ष पूर्व वैशाली नगरी का कण कण वर्द्ध मान के जन्म से धन्य हो उठा था। कितने भाग्यशाली होंगे उस समय के जन जिन्होंने इतने निकट से महावीर को देखा. पाया और आत्म सात् किया । उसी दिन, उसी क्षण स्मृति के रूप में महावीर के सत्य अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकांत और ब्रह्मचर्य के पवित्र सिद्धान्तों के प्रचार और प्रसार में राजस्थान जैन सभा द्वारा प्रतिवर्ष प्रकाशित स्मारिकायें, कितना योगदान दे रही है, इसका आकलन तो प्रबुद्ध पाठक गरण ही करें । मैं उसी पुष्पमाला की कडी में इस अठारहवां पुष्प को समर्पित करते हुए अपने आप को गौरान्वित मानता हूं। महावीर द्वारा प्रणीत सिद्धान्त, सार्वदैशिक और सार्वजनिक है, उन्हीं को अपनाने पर प्रशांत मानव को शांति मिल सकती है। विभिन्न विद्वानों, मनीषियों और विषय विज्ञों द्वारा अपनी अपनी विधा से अपनी अपनी लेखनी द्वारा उक्त सिद्धान्तों का प्रतिपादन प्रस्तुत स्मारिका में किया है। इस वर्ष सम्पन्न हए भगवान बाहबली के सहस्त्राब्दि महामस्तकाभिषेक से सम्बन्धित तथा भगवान बाहुबली के जीवन चरित व उनके दर्शन को चित्रित करने वाली सामग्री को भी इस अठारहवें पुष्प में उपयुक्त स्थान देने का प्रयास किया गया है। फिर भी अपनी सीमाओं के कारण सामग्री सीमित अवश्य है किन्तु मेरा विश्वास है पाठकों का मन लभाने में कोई कसर सम्पादक ने नहीं रखी हैं। स्मारिका में प्रकाशनार्थ अनेक सुनाम धन्य विद्वान् मनीषियों ने सभी बहुमूल्य कृतियां भेजी, पर सभी को स्मारिका में स्थान न दे पाने की हमारी अपनी विवशता है । कृतियों के स्तर पर हम कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते, वे तो सभी उच्चता और गरिमा लिए हुए हैं, जिन्हें इस वर्ष हम चाहते हुए भी प्रकाशित नहीं कर पा रहे, उन्हें आगामी वर्ष के लिए सुरक्षित रख लिया है । जिनकी रचनायें प्रकाशित हुई है और जिनकी सुरक्षित रख ली गई है, उन सभी विद्वान मनीषियों के प्रति मैं आभारी हूं, जिन्होंने स्मारिका के लिए सामग्री देकर सुन्दरतम रूप देने का प्रयास किया है । मेरी भावना है यह स्मारिका सम्पूर्ण मत-भेदों को भुलाकर एकता की प्रतीक बनेगी। इस स्मारिका के सम्पादन का दायित्व इस वर्ष भी प्रधान सम्पादक के रूप में श्री ज्ञानचन्द बिल्टीवाला को दिया गया है जिन्होंने सम्पादक के कार्य हेतु श्री बुद्धि प्रकाश भाष्कर को चून कर स्मारिका में चार चांद लगाने का प्रयास किया है। यह स्मारिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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