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________________ मन्दिर जी में जाने का आदेश दिया गया है। क्योंकि मन्दिर प्रात्म बोध कराने में साधन है। जिन मन्दिर जी में तीर्थंकरों की प्रति मूर्तियां दृष्टिगोचर होती हैं जिन्होंने अपने आचरणों से और महान साधनाओं से महानतम परमात्य पद प्राप्त किया है। उनकी वीतराग प्रशान्त मुद्रामय मूर्ति को देखते ही श्रद्धा से मस्तिष्क झुक जाता है और प्रात्मा से परमात्मा बनने तक की उनकी सम्पूर्ण साधना प्रणाली पाँखों में घूम जाती है और मुंह में एकाएक निकल उठता है। तुम गुण चिंतन निजपर विवेक, प्रगटे विधटें आपद अनेक | जैसा प्रदर्श सामने होता है, वैसे ही बनने की हमें प्रेरणा मिलती है। वहीं उन्हीं के द्वारा प्रतिपादित जैन शास्त्र उपलब्ध हो जाते हैं, जिन्हें पढ़ कर हमें संसार की सभी स्थिति और उसका सही रूप का बोध होता है। जीवन की सभी गतिविधियों और उनका परिणाम सब समझ में आने लगता है। भोगी और उनके भोगने का परिणाम भी ज्ञात हो जाता है। उनकी निःसारता देख उन्हें छोड़ने की प्रवृत्ति हो जाती है । मन्दिरों में जिनप्रतिमा-जिनवाणी के देखने व सुनने से पढ़ने से भ्रात्मविश्वास व श्रात्मबोध प्राप्त होता है । विश्व के अनेकों मनीषियों ने कहां है कि जैसी चीजें हम देखते हैं व जैसी बातें हम नित्य प्रति सुनते हैं हम वैसे ही बन जाते हैं। जैसा हम आदर्श अपने सामने रक्खेंगे हम वैसे ही बनेंगे । यह ध्रुव सत्य है । जैन मन्दिर प्रदर्श स्थल हैं । वहां का कण-कण हमें सुख शान्ति का संदेश देता है । आज हमने वहां जाना आना समय को नष्ट करना समझ लिया है । इसलिये अनेक वहां जाते नहीं है और महान संस्कृति की उपलब्धियां एवं गरिमानों से वंचित रह जाते हैं । Jain Education International यह सब धार्मिक शिक्षा के प्रभाव में होता है । जीवन के उत्कर्ष के लिये जीवन को सफल व आदर्श बनाने के लिये धार्मिक शिक्षा बहुत जरूरी है। इससे ही नैतिकता आयेगी, व्यावहारिकता आवेगी। आज हम जब लड़की देखने जाते हैं, तब यह तो पूछते हैं कि उसने बी. ए. पास किया है, या एम. ए. । मगर यह नहीं पूछते हैं, ि धार्मिक शिक्षा कहां तक ली है। यही कारण है कि लड़कियां भौतिक शिक्षा के प्रति तो आकर्षित हैं, धार्मिक शिक्षा की ओर नहीं क्योंकि उसकी पूछ नहीं है। धार्मिकता ही नैतिकता पैदा करती है। वर पक्ष दहेज की मांग कर अपना घर भरने की दृष्टि रखता है। वह कन्या पक्ष की स्थिति पर कब ध्यान देता है। दहेज के कारण ही हजारों सुयोग्य कम्याऐं वयः प्राप्त होने पर भी प्राज कुमारी जीवन बिता रही हैं और समाज की व्यवस्था पर धांसू बहा रही हैं। युवकगरण भी अपने नाम के साथ जैन शब्द तो लिखता है, किन्तु यह नहीं जानता है कि जैन किसे कहते हैं । मैंने महाराजा कालेज के छात्रावास में एक छात्र की कापी पर प्रदीप जैन लिखा हुआ देखा तो बड़ी खुशी हुई। सोचा बच्चों में धर्म के प्रति रुचि व आस्था तो है, जभी उसने अपने नाम के पीछे जैन लिखा है । मैं भी अपने वहीं रहने वाले बच्चों से मिलने गया था मैंने वहीं बैठे-बैठे प्रदीप जैन से पूछा, प्रदीप जैन से पूछा, भैय्या तुम्हारा नाम तो बहुत सुन्दर है, किन्तु अपने नाम के साथ 'जैन' शब्द क्यों लिखा है ? उसने जवाब दिया कि 'मेरे फादर भी अपने नाम के साथ जैन लिखते हैं । इसीलिये मैं भी लिखता हूं । 'जैन' क्यों लिखते थे और जैन क्या है यह मैं नहीं जानता हूं। मैंने उसे और टटोलने की दृष्टि से कहा, भैय्या जैन शब्द जैनधर्म का अनुयायी होना बताता है और जैनधर्मं बड़ा ऊंचा और सही धर्म है । तो उसने तपाक से जवाब दिया कि मैं धर्म को ढकोसला समझता हूं। 2/44 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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