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________________ मंत्र शक्ति - कोरी कल्पना श्री फतह चन्द सेठी, अजमेर लेखक महोदय ने मंत्र शक्ति के नाम पर चल रहे भुलावे की ओर हमारा ध्यान खींचा है। गत वर्ष इसी स्मारिका में छपे श्री विरधीलालजी सेठी के अष्ट द्रव्य पूजा पर लेख और उनकी पुस्तिका से पंचामृताभिषेक, अष्ट द्रव्य पूजा आदि विषयों पर जैन पत्र पत्रिकाओं में पक्ष विपक्ष में काफी ऊहापोह हुआ है। इस लेख में उस ही क्रम में मंत्र और उसकी शक्ति के सम्बन्ध में प्रश्नचिन्ह लगाया गया है। -प्र. सम्पादक "वीर" के अंक 7 (ता. 1 नवम्बर 1980) किस प्रकार मूर्तियों को तोड़ा तथा जब उनके में श्रीमान पं0 नाथूलालजी शास्त्री इंदौर का एक उपासकों व पंडे पुरोहितों ने उसे द्रव्य आदि देकर लेख “मूर्ति और उसके पंच कल्याणक' शीर्षक फुसलाना चाहा तो उसने साफ कह दिया किप्रकाशित हुआ है जिसमें विद्वान् लेखक महोदय ने मै मूर्ति तोड़ने वाला हुं, मूर्ति बेचने वाला नहीं। जगह जगह मंत्र शक्ति के प्रभाव का जिक्र किया यदि मंत्र प्रतिष्ठित मूर्तियों में कुछ भी चमत्कार है और एक स्थल पर तो यहां तक लिखा है कि होता तथा उसके प्रभाव से आक्रमणकारी अधा "अनेक मंदिरों और मूर्तियों पर आक्रमण करने हो गया होता तो मंदिरों में या वेदियों में मूर्तियों वाले अंधे हो गये हैं और भयान्वित हो कर भाग ब कीमती उपकरणों की रक्षा व चौकीदारी के गये हैं क्योंकि दे मंदिर और मतियाँ मंत्र प्रतिष्ठित लिये चौकीदारों की प्रावश्यकता नहीं होतीथीं।" मंत्रशक्ति से स्वथं ही उनकी रक्षा हो जाती। आये दिन जैन व अजैन मंदिरों में चोरियां श्री भक्तामर स्तोत्र के विषय में यह किंवदंती होती हैं जहां ठाकुरजी को, यदि वे अष्ट धातु के प्रचलित है कि उसके रचयिता श्री मानतुगाचार्य या पीतल के हों तो उन्हें एक ओर डाल कर उनके को अड़तालीस ताले लगा कर एक कोठरी में चांदी के सिंहासन व छत्र आदि को चोर चुरा ले बंद कर दिया गया था, लेकिन उन्होंने जब उक्त जाते हैं, तथा यदि मूर्ति सोने की, चांदी की या स्तोत्र की रचना की तो वे सब अड़तालीस ताले कीमती धातु आदि की हो तो उसे गला कर पिंड टूट गये और श्री मानतुग स्वामी कोठरी से बाहर बना कर बेच दिया जाता है। इतिहास का प्रा बिराजे। भक्तामर स्तोत्र सुंदर व भाबपूर्ण विद्यार्थी जानता है कि महमूद गजनी आदि ने काव्य है; कई कवियों ने इसके हिंदी अनुवाद 2/40 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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