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________________ 1. 1. प्र उसहो नीलंजसाए मरणात्री तिलोयपण्णति । 4-606 इस ग्रंथ को देखने के लिए लेखक महावीर शोध केन्द्र चारबाग लखनऊ का श्राभार स्वीकार करता है । ब इति संसारचक्रे स्मिन् विचित्ररूपरिवर्तने । दुःखमाप्नोति दुष्कर्मपरिपाकादव राक्कः । नारीरूपमयं यन्त्रमिदमत्यन्तपेलवम् । पश्यातामेव न साक्षातकथमेतदगाल्लयम् ॥ 17.36 रमणीयमिदमत्वास्त्री रूपबहिरुज्वलम् । परतन्त्रनश्यन्तिपतङ् इबकामुकाः ॥ 17.37 कूटनाटकमेतत पयुक्तममरेशिना । नूनमस्मत्प्रबोधायस्मृतिमाधायधीमता ॥ 17,38 यथेदमेवमन्यच्चभोगङ्गयत् क्लिङ्गिनाम् । भङ गुरं नियतापायं केवलं तत्प्रलभ्यकम् । 17.39 fi किलाम भीरेः किमलैरनु लेपवः । उन्मत्तचेष्टितैनृत्तिरलं गीचैश्चशोचिते ॥ 17.40 .............आदिपुराण, जिनसेन अनु० पन्नालाल जैन काशी 1963 / राज्य संग्रहालय लखनऊ पुस्तकालय से । Jain Education International 2/23 For Private & Personal Use Only सहायक निदेशक, पुरातत्व संग्रहालय 27, केसरबाग लखनऊ www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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