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________________ तथा संगति अवश्य होनी चाहिए। यह वर्णन करने तीर्थङ्कर महावीर ने बिहार प्रान्तस्थित राजगृह वाले के उन सूत्रों पर अवलम्बित होती है, जिनको के विपुलाचल पर ई० पू० ५५७ में जुलाई में प्रथम रेखांकित करता हुआ लेखक वर्ण्य-विषय को आगे देशना दी थी। सोलह भावनाएं विशेष रूप से बढ़ाता है। यदि उनमें कहीं अनौचित्य लक्षित तीर्थङ्कर बनने में निमित्त होने से सोलह कारण होता है, तो हमें पूरी परम्परा संक्रांत करनी होती कही जाती हैं। मनस्वी लोग अपने पुरुषार्थ से है, जिस प्रक्रिया में वास्तविकता का सरलता से भगवान् बन जाते हैं। जो बिना किसी अपेक्षा के निर्णय हो जाता है । अतएव पुराण निरर्थक नहीं विश्व के सभी प्राणियों को हितकारी मार्ग दिखाते हैं, किन्तु हमारा अर्थ-बोध ही सार्थक व निरर्थक हैं, जिस पर स्वयं चल कर वे परमात्मा बने हैं, हो सकता है, जो हमारी पकड़ पर अवलम्बित वही बिना किसी प्रयोजन के सब को मार्ग दर्शाते हैं, वे ही धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करने वाले मोक्षमार्ग के तीर्थ : धर्म-प्रवर्तन नेता या तीर्थङ्कर कहे जाते हैं. अर्हन्तों की ___ तीर्थ रूपी धर्म का प्रवर्तन करने वाले परम्परा में भगवान् अनन्त बन सकते हैं, किन्तु 'तीर्थङ्कर' कहे जाते हैं। 'तीर्थ' का अर्थ 'घाट' तीर्थ का प्रवर्तन करने वाला वही होता है जिसने है । जैसे नदी पार करने के लिए घाट एक साधन दर्शन विशुद्धि आदिक सोलह भावनाओं के है, वैसे ही परमार्थ की उपलब्धि के लिए संस्कारों से इतनी विशुद्धता प्राप्त कर ली हो, जिससे तीर्थ एक साधन है । इस तीर्थ की उपासना मुनियों तीर्थङ्कर प्रकृति अनुबन्ध हुआ हो। बौद्ध धर्म में के द्वारा भी की जाती है। संसार के सभी प्राणी भी बुद्ध बनने के लिए षोडश भावनाएं बताई जाने-अनजाने तीर्थ की शरण को प्राप्त होते हैं। गई हैं। अतएव धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करने वाले, 'तिलोयपण्णत्ति' (१, ६८-७०) में कहा गया है- मोक्षमार्ग के नेता सभी भगवान् नहीं होते। नेतृत्व अवसर्पिणी के चतुर्थ काल के अन्तिम भाग में करने वाले कुछ ही होते हैं, जिनकी संख्या चौबीस तैतीस वर्ष, आठ मास और पन्द्रह दिन शेष रहने बताई गई है। उन में से वर्द्धमान महावीर पर वर्ष के प्रथम मास श्रावण कृष्ण प्रतिपदा के चौबीसवें तीर्थङ्कर थे । उनका जन्म वर्तमान बिहार दिन अभिजित् नक्षत्र में धर्मतीर्थ की उत्पत्ति हुई। प्रान्त के मुजफ्फरपुर मण्डल (जिला) के बसाढ़ यह दिन 'वीरशासन-जयन्ती' के नाम से प्राज भी (बैशाली के कुण्डग्राम) ग्राम में चैत सूदी लेरस दिगम्बर-परम्परा मनाती है। श्वेताम्बर-परम्परा (599 ई० पू०) के दिन हुआ था। इस सम्बन्ध में मौन हैं। जैन संस्कृति में श्रावण जीवन-दृष्टि कृष्ण प्रतिपदा युग का वह प्रथम दिन माना जाता है, जिस दिन प्रथम बार साढ़े बारह वर्षों तक महावीर की दृष्टि अनेकान्त मूलक थी। लगातार मौन रह कर तपस्या करने के उपरान्त अनेकान्त यह बताता है कि प्रत्येक वस्तु में परस्पर 1. तीर्थकृन्नाम सम्प्रापत् फलं कल्याणपंचकम् । येन तीर्थकरो यं स्यात् किं नाप्स्यन्ति मनस्विनः ।। उत्तरपुराण, 50, 12 2. तीर्थकृत्तीर्थभूतात्मा तीर्थनाथः सुतीर्थवित् । तीर्थङ्करः सुतीर्थात्मा तीर्थेशस्तीर्थकारकः । वीरवर्द्ध मानचरित (सकलकीति), 15, 135 1-26 महावीर जयन्ती स्मारिका 76 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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