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मुख पृष्ठ का चित्र
भगवान महावीर स्वामी की पड़ -डा. महेन्द्र भानावत, उदयपुर
1 राजस्थान में लोकनाट्य का एक रूप पड़ नाट्य के रूप में प्रसिद्ध है । इसमें प्रदर्शनस्थल पर एक चित्रांकित पड़दा खड़ा कर दिया जाता है । पड़-वाचक भोपा अपने हाथ में वाद्य लिए प्रत्येक चित्र का विशिष्ट गायको में वाचन करता हुप्रा पड़ प्रमुख का यशगान बांचता है । इस समय वह विशिष्ट प्रकार की पोशाक धारण करता हुआ पड़ के सम्मुख बड़े जोश भरे लहजे में नृत्य करता है । पड़ गाथा गद्य पद्य मिश्रित होती है । इन पड़ों में पाबूजी तथा देवनारायण की पड़ सर्वाधिक लोकप्रिय हैं ।
इसी पड़ शैली में भीलवाड़ा के संगीतप्र ेमी श्री निहाल अजमेरा ने अपने सुसंगीत के प्रशिक्षण, प्रकाशन एवं शोध के संस्थान श्री जिनेन्द्र कला भारती की ओर से महावीर स्वामी की पड़ तैयारकर एक सार्थक अभिनव प्रयोगकर महावीर के प्रति अपने श्रद्धा सुमन चरणाये । • पड़ के चारों ओर बाउण्ड्री में प्रतीक व पट्टियों का बड़ा अच्छा संयोजन किया गया है । यह संयोजन दांये से बांई ओर को है जिसमें प्राकृत में श्रोम् का मूलरूप, अष्टमंगल चिन्ह, ही तथा नीचे की पट्टी में धर्मचक्र बीच में अष्ट प्रातिहार्य चिन्ह तथा प्रांत में स्वास्तिक | दांई ओर बाउण्ड्री के पास अनेकांत को अ ंकित करने वाला चित्र भी / ही व बाई ओर की बाउण्ड्री के पास जैन प्रतीक परस्परोपग्रहो जीवानाम् चितराया हुआ है । दांई से बांई ओर चलने वाली इस पड़ में दो भाग हैं। ऊपर का भाग व नीचे का भाग । ऊपर के भाग में क्रमशः त्रिशला के सौलह स्वप्न, इन्द्राणी द्वारा महावीर को सौधर्म इन्द्र को सौंपना, राजा सिद्धार्थ एवं उनके दरबारी, जन्मकल्याणक दृश्य, भगवान को मेरु पर्वत पर ले जाना, देवदेवियों द्वारा उनकी स्तुति में नृत्यगान, मेरु पर्वत पर जन्माभिषेक मनाना, राजकुमार वर्द्धमान की देव द्वारा सर्प- परीक्षा, संगम देव का अजमुख मानव रूप धारण करना, वर्द्धमान का महावीर नामकरण एवं पंच परमेष्ठी, अरिहन्त, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय तथा सर्वसाधुगण ।
नीचे के भाग में क्रमशः राजकुमार का कौए की ओर इंगित करते कौश्रा हुए काला भी है कहना, झूला झूलना, दरबारियों के साथ सिद्धार्थ, मधुबिन्दु, संसार दर्शन व तपस्यारत भगवान महावीर, रुद्र के उपसर्ग, दीक्षा कल्याणक - वस्त्रालंकार का त्याग व पंचमुष्ठि केशलु चन, आहार देती हुई चंदनबाला, इन्द्रभूति गौतम का मान भंग, देवताओं द्वारा निर्मित समवसरण में भगवान का धर्म प्रवचन तथा देवताओं द्वारा महावीर के मोक्ष गमन के पश्चात् उनके पार्थिव शरीर का श्रग्नि संस्कार करना ।
इस प्रकार इस पड़ में भगवान महावीर की सम्पूर्ण जीवन गाथा चित्रित है। लेखक, संयोजक एवं गायक श्री निहाल अजमेरा की इस अद्भुत कल्पना ने पड़ माध्यम से जैसे महावीर को मूर्तिवन्त कर सुबोधक रूप है जिसका अनेक ग्राम
बड़ा ही सशक्त और स्वागत किया है । मुनि
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दिया । लोकशिक्षण का यह नगरों और कस्बों ने हृदय
से
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