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________________ स्वतन्त्र चेतना के सजग प्रहरी महावीर - साध्वीश्री कनकश्रीजी Jain Education International दर्पण जितना अधिक स्वच्छ और निर्मल होता है, बाहय पदार्थ उतनी ही स्पष्टता से उसमें प्रतिबिम्बित होते हैं । घुंधला दर्पण किसी भी बिम्ब को स्पष्ट अभिव्यक्ति नहीं दे सकता । महावीर की चेतना स्वच्छ दर्पण के समान थी । अतः विश्व चेतना उसमें अपने यथार्थ रूप में प्रतिबिम्बित हुई। उन्होंने देखा हर चेतनशील प्राणी में विकास की अनन्त सम्भावनाएं हैं पर उनकी अभिव्यक्ति का एक मात्र अनुबन्ध है स्वतन्त्रता । व्यक्ति तब तक अपने व्यक्तित्व का स्वतन्त्र निर्माण नहीं कर सकता जब तक उसे जीने की स्वतन्त्रता न हो, सोचने की स्वतन्त्रता न हो, विचाराभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता न हो भौर कुछ करने की स्वतन्त्रता न हो । भगवान् महावीर ने सर्वज्ञता प्राप्ति से पूर्व भी यह तीव्रता से अनुभव किया कि आज विश्व चेतना की सबसे बड़ी छटपटाहट और अकुलाहट है स्वतन्त्रता प्राप्ति की । लेकिन सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक मूल्य ही कुछ ऐसे बन चुके हैं, जिनके आधार पर उस व्यक्ति या समूह को प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, जो दूसरों की स्वतन्त्र - चेतना पर अपना अधिक से अधिक प्रभुत्व स्थापित कर सके । महावीर ने इन मूल्यों का प्रतिरोध किया और सामाजिक राजनैतिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में वैयक्तिक स्वतन्त्रता की प्राण-प्रतिष्ठा की । फिर भी प्राश्चर्य होता है, कुछेक व्यक्ति विश्वात्मा के साथ समत्व की अनुभूति करने वाले भगवान महावीर के विचारों में भी श्रधिनायकवाद के दर्शन करते हैं । मैंने सुना एक साम्यवादी विचारक के मुंह से कि- महावीर अधिनायकवाद के समर्थक थे । वे I For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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