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________________ 2-40 शास्त्रों की प्रतियां लिखाई । यह भी बड़े प्रभावक मेवाड प्रदेश निवासी श्रावकों को भी वे ही धर्मलाभ एवं सुयोग्य भट्टारक थे । प्रायः पूरे राजस्थान पर देते रहे । इनकी माम्नाय का विस्तार था और अनेक त्यागी, उपरोक्त मंडलाचार्य ललितकीर्ति ने चाटसू तथा प्रायिकाएँ एवं अनगिनत श्रावक-श्राविकाएँ इनके शिष्य थे। नगर में भी एक शाखापट्ट स्थापित किया था । उन्होंने अनेक व्रत, अनुष्ठान, उद्यापन प्रादि कराये चित्तौड़पट्ट पर इनके उत्तराधिकारी भट्टारक मोर ग्रन्थों की प्रतियाँ दान कराई थीं। इनका ललितकीति मंडलाचार्य (1546-1565) रहे। शिष्य परिवार भी विशाल था। प्रामेर पटपर चन्द्रकीर्ति ही चलते रहे । मंडलाचाय चित्तौड के अन्तिम पट्टाधीश मंडलाचार्य भट्टारक ललितकीर्ति के उपरान्त मामेर पट्ट के चन्द्रकीर्ति भी प्रभावशाली गुरू थे । उन्होंने भी मंडलाचार्य चन्द्रकीर्ति ही संयुक्त पट्ट के स्वामी हुए। अनेक बिम्बप्रतिष्ठाएँ प्रादि कराई। राजस्थान में किन्तु 1667 ई० में मुगल सम्राट अकबर के हाथों भामेर से बीकानेर पर्यन्त और मध्यप्रदेश-बरार खान देश में अमरावती पर्यन्त इनकी प्राम्नाय का विस्तार चित्तौड़ पट्ट समाप्त कर दिया गया लगता है, और था। यह गत्यन्त दीर्घजीवी भी रहे प्रतीत होते हैं, प्रामेर, नागौर मादि के पट्ट भी प्रायः एक दूसरे क्योंकि इनके पट्टकाल का अन्त 160 5 ई० के से स्वतन्त्र चलने प्रारम्भ हुए । अपनी प्राम्नाय के लगभग के हुप्रा बताया जाता है। आलोकित सारा लोकाकाश - कुसुम पटोरिया सबल समर्थक अणु-अणु की स्वतन्त्रता का समता का उद्घोषक बाहर भीतर एक अखंडित सा व्यक्तित्व साधना के द्वादश वर्षों में रहा मुकुल सा अन्तर्मुख तपस्या की अग्नि में तपकर पाया शब्दातीत प्रकाश वीर प्रभू की ज्ञान-रश्मियों से आलोकित सारा लोकाकाश। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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