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________________ भगवान महावीर विषयक पुरातत्वीय प्रमाण प्राचीन भारतीय साहित्य एवं अभिलेखों में श्रमण विचार परम्परा तथा उसके प्रमुख प्रवक्ता महावीर स्वामी के सम्बन्ध में प्रचुर उल्लेख मिलते हैं। तत्संबंधी मनेक साहित्यिक मान्यताओं को मूर्तिकारों तथा चित्रकारों ने अपनी कृतियों में मूर्त रूप प्रदान किये । जैन धर्म के सम्बन्ध में पुरालेखों मूर्तियों तथा चित्रों के रूप में पुष्कल सामग्री उपलब्ध है। उससे साहित्यिक विवरणों की पुष्टि में सहायता मिली है। जैन धर्म ने भारतीय संस्कृति के मूलभूत सिद्धांतों-सत्य, अहिंसा, त्याग तथा परोपकार के संवर्धन में महत्वपूर्ण योग दिया। प्रतः यह धर्म जनता में बहुत माहत हुा । साहित्यिक तथा पुरातत्वीय प्रमाणों से यह बात सिद्ध हुई है । भगवान महावीर के जीवन-काल में उनकी चन्दन की प्रतिमा निर्मित होने के उल्लेख कतिपय प्रो० कृष्णदत्त वाजपेयी, अध्यक्ष, पुरातत्व जैन ग्रन्थों में मिलते हैं । अनुश्रुति के अनुसार विभाग, सागर विश्वविद्यालय, सागर भगवान महावीर को चन्दन की प्रतिमा सिंधुसौवीर के शासक उदायरण (रुद्रायण) के अधिकार में गई बाद में उनसे उज्जैन के शासक प्रद्योत ने ले लिया और मूर्ति की विदिशा नगरी में रखी। उसकी एक प्रतिकृति बनवाकर बीतभयपट्टन नामक नगरी में रखी गई। देवयोग से भारी तूफान आने के कारण यह प्रतिकृति नीचे दब गई। उसके दबने से सारा नगर नष्ट हो गया। श्री हेमचन्द्राचार्य के मनुसार गुजरात के प्रसिद्ध शासक कुमारपाल ने इस प्रतिकृति को निकलवाकर उसे प्रणहिलपाटन [इस रचना में जीवन्त स्वामी संबन्धी विवरण नगर में प्रतिष्ठापित कराया। विवादास्पद है : 10 से 12 अक्टूबर तक जयपर में होने वाली जैन विद्या परिषद् में जहां कि यह भगवान महावीर की इस चन्दन-प्रतिमा के निबन्ध पढ़ा गया था, इस विषय पर पर्याप्त माधार पर कालान्तर में अन्य मतियों का निर्माण ऊहापोह हुना था। -पोल्याका] हुमा होगा । कलिंग के प्रसिद्ध शासक खारवेल का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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