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________________ आल इण्डिया रेडियो से प्रसारित जैन दर्शन की व्यापकता जैन दर्शन के विषय में जब मैं बात करता हूं तो मेरे सामने एक महान व्यक्तित्व उभर कर पाता है । यह व्यक्तित्व है वर्धमान महावीर का । महावीर ने जैन दर्शन के सिद्धान्तों की जो व्याख्या दी, उससे जैन दर्शन मानवीय जीवन मूल्यों के साथ मनिवार्य रूप से संपृक्त हो गया। वह जनदर्शन बन . गया। मुझे तो स्पष्ट दिखाई देता है कि महावीर के बाद इन ढाई हजार वर्षों में जैन दर्शन के सिद्धान्तों का व्यापक प्रसार हुआ है । उसने न केवल भारतीय जीवन को प्रत्युत विश्वचिन्तन को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। सिद्धान्तों की बात करने से पहले यह जान लेना उपयुक्त होगा कि यह दर्शन कहां से प्रतिफलित हा। महावीर जैन धर्म के चौबीसवें और अन्तिम तीर्थकर माने जाते हैं। उनके साथ तीर्थंकरों के चिन्तन की एक दीर्घकालिक परम्परा जुड़ी है। सुदूर अतीत की वह कड़ी अब भी इतिहास की पकड़ के बाहर है। पुरातत्व और स हित्यिक अनुसन्धानों से जो तथ्य सामने आये हैं, उनसे इतना तो स्पष्ट ज्ञात होता है कि इतिहास पूर्व में भी चिन्तन की दो धाराएं प्रवाहित होती रही हैं। इन्हें श्रमण और ब्राह्मण विचारधारा कहा गया । ब्राह्मण परम्परा के प्रवर्तक वैदिक ऋषि थे । श्रमण परम्परा ऋषभ द्वारा प्रवर्तित हुई । प्राचीन वाड्मय में वातरशन मुनियों, व्रात्यों और केशी श्रमण के विवरण मिलते हैं, वे स्पष्ट रूप से श्रमण संस्कृति से सम्बद्ध ज्ञात होते हैं। ऋषभ ने ध्यान और कायोत्सर्ग की कठोर साधना की थी। मोहन-जो-- दरों तथा हड़प्पा के उत्खनन में प्राप्त कायोत्सर्ग प्रतिमानों का सम्बन्ध इसी परम्परा से प्रतीत होता होता है। डा. गोकुलचन्द्र जैन वाराणसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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