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________________ म. महावीर भौर उनका अपरिग्रहवाद अज्ञानान्धकार के बादल सदैव छाये रहते थे जिससे दुष्प्रवृत्तियों को बल मिल रहा था। ऐसी स्थिति में बालक महावीर दूज के चन्द्रमा के समान वृद्धिगत हो रहे थे। उनके एक ओर तो सुखसाम्राज्य लहरा रहा था, तो दूसरी ओर जनता का करुण क्रन्दन । महावीर की दृष्टि वैभव-विलास की ओर न रम सकी। उन्हें तो जनता-जनार्दन के आर्तनाद ने ही आकृष्ट कर लिया और वे उसकी सहायता हेतु नए पय का निर्माण करने के लिए साधना में लीन हो गए। मां के आंसू भी उन्हें वन जाने से न रोक सके । . भगवान महावीर ने सतत स धना और चिन्तन -श्रीमती विद्यावती जैन एम. ए. साहित्यरत्न के द्वारा देश को ऐमा लो-कल्याणकारी पालो पारा (बिहार) प्रदान किया कि जिसकी प्राभा ने समस्त देश को जाज्ज्वल्यमान कर दिया। उन्होंने विश्व को शाश्वत-सुख का मार्ग दिखाने के लिए कुछ सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया उनमें असि अनेकान्त एवं अपरिग्रह के सिद्धान्त तो सार्वकालिक एवं सार्वदेशिक ही उायोगी सिद्ध हुए हैं। - ई० पूर्व छठवीं शताब्दी विश्व के इतिहास में आज देश की जो स्थिति है, उनमें फिर से युगों युगों तक चिरस्मरणीय रहेगी। इस सदी में इन सिद्धान्तों के प्रचार एवं प्रसार की महती कसे वीर सपत को जन्म आवश्यकता है। भगवान महावीर का अपरिग्रह दिया था, जिसने अपने साहस, धैर्य एवं त्याग से का सिद्धान्त तो आज के युग के लिए अत्यन्त अपने युग की धारा ही बदल दी। वे वीर पुरुष आवश्यक है। थे 24 वें तीर्थङ्कर भगवान महावीर, जिनका जन्म अपरिग्रह 2572 वर्ष पूर्व चैत्र मास की शुक्ल त्रयोदशी को अपरिग्रह का अर्थ है परिग्रह का अभाव । वैशाली नगर में हरा था। सामान्य रूप से धन-सम्पत्ति आदि को ही परिग्रह ____ भगवान महावीर के समय देश की स्थिति कहते हैं। , यह दो प्रकार का होता है। बाह्यअत्यन्त शोचनीय थी। बाह्य प्राडम्बरों एवं परिग्रह एवं अन्तरङ्ग-परिग्रह । बाहय परिग्रह पन्धविश्वासों का अत्यधिक प्रचार था। सामान्य के अन्तर्गत तो धन-धान्य प्राता है और अन्तरङ्ग जनता नैराश्य का जीवन व्यतीत कर रही थी। में रागद्वेष, मोह, जिसे मूी भी कहा जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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