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________________ चकले की वेश्या सदाचार का उपदेश .श्री पदम कुमार सेठी डीमापुर (नागालैण्ड) साठ करोड़ की आबादी में कुछ लोग कहते हैं। धर्म करो कुछ कर्म करो नाम ये ही बस रटते हैं । धर्म की परिभाषा क्या है, यह उनको मालूम नहीं। होम कर लिया जाप कर लिया, उनका बस है धर्म यही । कितने बेबस कितने भूखे, नजरों के आगे रहते हैं। हास्य पद कितना लगता है, उपदेश जब वो देते हैं । पीऊंगा मैं रात शराब दिन को कहूंगा है खराब । दिन में कहता छोड़ इसे, रात को कहता क्या शबाब । लानत तुम पर देता हूं मैं, कहते कुछ करते हो कुछ । अन्धविश्वास जकड़ रखा है, पकड़ रखी बस उसकी पूंछ । ईश्वर हम से कहता है, मुझे नहीं विचार अपनायो। कर्म जब अच्छे नहीं कर सकते, नजरों से दूर चले जायो। यहां पूजा तुम मेरी करते हो, बाहर गन्दे दम भरते हो । लेने यहां क्या आये हो तुम, अपमान जो मेरा करते हो । ईश्वर इतना निर्दयी नहीं जो, भक्तों की पुकार नहीं सनेगा। कर्म करोगे उल्टे जब तुम, फिर बतलायो कैसे सुनेगा। हार्दिक इच्छा मेरी ये थी, मानव मन्दिर मानव धर्म हो । वादविवाद को दूर फेंककर, हृदय सबके मानव ही मानव हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014031
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1975
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1975
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size11 MB
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