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________________ बौद्ध वाङ्मय में मङ्गल की अवधारणा सामूहिक हितों एवं आदर्शों के पालन के लिए होता है। सामाजिक सिद्धान्त जो सामाजिक संस्था के संचालन के लिए निर्मित होते हैं, उनसे सामाजिक नियन्त्रण, अनुशासन, आदर्शों का स्वरूप परिज्ञापन, निश्चित जीवनमूल्यों का सम्पादन, जीवन मर्यादाओं और धारणाओं का अन्तर्वेशन होता है । भगवान् बुद्ध ने जिन सामाजिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, वे इस प्रकार हैं १. असेवना च बालानं (मूर्खों का साहचर्य अथवा संगति न करना) । २. पण्डितानं च सेवना (पण्डितों एवं ज्ञानियों की सेवा करना) । ३. पूजा च पूजनीयानं ( पूजनीयों की पूजा करना) । ४. पतिरूपदेसवासो ( प्रतिरूपप्रदेश में वास करना) । ५. पुब्बे च कतपुञ्ञता ( पूर्व में किया गया पुण्यकर्म) । ६. अत्तसम्मापणिधि (शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वयं को अधिष्ठित करना) । ७. बाहुसच्चं (बहुश्रुत होना, बहुविस्तीर्ण अनुभवों के आधार तात्त्विक दृष्टि को प्राप्त करना) । ८. सिप्पं (कला तथा विज्ञान का ज्ञान ) । ९. सुभासिता च वाचा ( सुभाषित वचन का प्रयोग ) । १०. विनयो च सुसिक्खितो (सुशिक्षित विनय ) । १. असेवना च बालानं ७ भगवान् बुद्ध के अनुसार मूर्खों का असाहचर्य अर्थात् मूर्खों की संगति का न होना उत्तम मङ्गल है । मूर्ख वह है जो अकुशलकर्मों का सम्पादन करता है, असत्य बोलता है, प्राणियों की हिंसा करता है। सद्धर्म के प्रति श्रद्धा नहीं रखता है तथा कदाचारपरायण रहता है। मूर्ख स्वयं को विनष्ट करता है और उन लोगों को भी विनष्ट करता है जो उनके अतिवाक्यों से प्रभावित होता है। मूर्खों के दर्शन न होने से मनुष्य सदा सुखी रहता है अदस्सनेन बालानं निच्चमेव सुखी सिया' (धम्मपद २०६ ) । मूर्खों का संवास सर्वदा 'अमिच्च' अर्थात् शत्रु के समान दुःखदायक होता हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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