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________________ श्रमणविद्या-३ बालसंगतचारी हि दीघमद्धान सोचति ।। दुक्खो बाले हि संवासो अमित्तेनेव सब्बदा ।। (धम्मपद २०९)। अकेले चलना श्रेयस्कर है किन्तु मुखों की संगति अच्छी नहीं है। ‘एकस्स चरितं सेय्यो, नत्थि बाले सहायता' (धम्मपद ३३०) भगवान् बुद्ध ने कहा है कि यदि साथ विचरण करने वाला अनुकूल पण्डित न मिले तो राजा के समान विजित राष्ट्र को छोड़कर हस्तिराज के समान अकेला विचरण करे नो चे लभेथ निपकं सहायं सद्धिचरं साधुविहारिधीरं । राजा' व रटुं विजितं पहाय एको चरे मातङ्गर व नागो ।। (धम्मपद ३२९)। 'अकित्तिजातक' में कहा गया है कि मूर्ख को न देखे, न उसकी बात सुने, न उसके साथ संवास करे, न उसके साथ आलाप संलाप करे, वह सर्वदा अनय का प्रवर्तन करता है। उत्तरदायित्वहीनता में नियोजित करता है। अन्याय को अधिमान देता है, यथोचित या ठीक कहने पर क्रोध करता है। वह विनय (शील, सदाचार) को नहीं जानता है। अत: मूों का अदर्शन ही अच्छा है बालं न पस्से न सुणे, न च बालेन संवसे । बालेनल्लापसंलापं न करे न च रोचये ।। अनयं नयति दुम्मेधो अधुरायं नियुञ्जति । दुन्नयो सेय्यसो होति, सम्मवुत्तो पकुप्पति ।। विनयं सो न जानाति, साधु तस्स अदस्सनं ।। (अकित्तिजातक पृ. २५९) इसलिए तत्त्वदर्शी भगवान् बुद्ध ने असेवना च बालानं अर्थात् मूखों के असाहचर्य को उत्तम मङ्गल कहा है। २. पण्डितानं च सेवना भगवान बुद्ध ने पण्डितों के साहचर्य को उत्तम मङ्गल कहा है। पण्डित सम्यक् विचार, सम्यक् भाषण, शुभ एवं मङ्गलकारी वचन तथा शुभकर्म करने वाला होता है। पण्डित पाण्डित्य से समन्वागत (पण्डिच्चेन समन्नता) होता है, ज्ञानवान्, विवेकी, धर्मपरायण, विनयसम्पन्न तथा सत्यसन्ध होता है। वह मान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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