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________________ शोभाकार मित्र की काव्यदृष्टि १२७ वृत्तिनिरूपण अलंकारशास्त्र में वृत्ति, रीति, मार्ग, संघटना तथा शैली शब्द प्राय: समानार्थक हैं। वृत्ति शब्द का प्रयोग आचार्य उद्भट ने किया हैं। उन्होनें अपने काव्यालंकारसारसंग्रह ग्रंथ में उपनागरिका, परुषा तथा कोमला- इन तीन वृत्तियों का वर्णन किया है। इन्हीं वृत्तियों को वामन ने वैदर्भी,गौड़ीया तथा पांचाली नाम से अभिहित किया हैं। कुन्तक तथा दण्डी का मार्ग तथा आनन्दवर्धन की संघटना एक ही तत्व है जिसे आधुनिक समीक्षकों ने शैली का नाम दे दिया है। आनन्दवर्धन ने संघटना के तीन असमासा, मध्यमसमासा, तथा दीर्घसमासा रूप से माना है और उसे गुणों का आश्रित बताया हैं असमासा समासेन मध्यमेन च भूषिता तथा दीर्घसमासेति त्रिधा संघटनोदिता । गणानाश्रित्य तिष्ठन्ती माधुर्यादीन् व्यनक्ति सा ।। (ध्वन्यालोक ३।५-६) शोभाकरमित्र भी ध्वनिकार का अनुसरण करते हुए वृत्ति को गुणों के माध्यम से (गुणों के आश्रित रह कर) रसादि का परिपोषक माना है और उसे वर्णसंघटना बतलाया हैं ‘वृत्तिश्चानुगुण्येन रसादिपरिपोषकं वर्णानाम्। सा च सुकुमारासुकुमारमध्यमवर्णारब्धत्वात्रिविधा। तत्र सुकुमाराणां शृंगारकरुणयोः परिपोषकत्वम्। असुकुमाराणां वीररौद्रवीभत्सेषु मध्यमानां हास्यभयाद्भुतशांतिषु।' (अ.र.पृष्ठ४) इस संक्षिप्त विवेचन से स्पष्ट है कि शोभाकरमित्र काव्यशास्त्र के विभिन्न तत्त्वों के मर्मज्ञ एक प्रकाण्ड आलंकारिक हैं, तथापि काव्यात्मतत्त्व के रूप में उन्हें रसादि ही इष्ट हैं, जो व्यंग्य है। अलंकार तो उसके उपस्कारकमात्र हैं। अत: अलंकारों का निरूपण करने पर भी उन्हें अलंकारवादी नहीं कहा जा सकता। वस्तुत: वे ध्वनिवादी आचार्य हैं और आनन्दवर्धन के मत के निर्भान्त परिपोषक हैं। १. काव्यप्रकाश पृष्ठ ४०५ सम्पादित आचार्य विशेश्वर २. का.प्र.सूत्र ११०की वृत्ति- ‘एतास्तिस्रो वृत्तयः वामनादीनां मते वैदर्भी, गौडी पांचालाख्या रीतयो मताः।' ३. सम्प्रति तत्र ये मार्गा: कविप्रस्थान हेतवः । सुकुमारो विचित्रश्च मध्यमश्चोभयात्मका: ।। वक्रोक्ति.१।२४।। ४. अस्त्यनेको गिरां मार्गः सूक्ष्मभेदः परस्परम् । तत्र वैदर्भगौडीयो वयेते प्रस्फुटान्तरौ ।। आव्यादर्थ१४४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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