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________________ श्रमणविद्या-३ 'तमर्थमवलम्बन्ते येऽङ्गिनं ते गुणाः स्मृताः । अंगाश्रितास्त्वलंकारा मन्तव्या कटकादिवत्।। (ध्वन्यालोक-२६) यद्यपि आनन्दवर्धन के पूर्व वामन, दण्डी, भामह आदि को गुण और अलंकार दोनों की शब्दार्थधर्मता ही इष्ट है। दोनों में भेद यह है-गुण शब्दार्थों के नित्यधर्म हैं और अलंकार अनित्य धर्म। वामन का गुण है 'काव्यशोभा को उत्पन्न करने वाला धर्म, (काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मा गुणाः) और अलंकार हैं उस काव्यशोभा के अतिशय के हेतु, (तदतिशयहेतवस्त्वलंकारा:) गुण अकेले ही काव्य में सौन्दर्य उत्पन्न कर सकते हैं, अलंकार नहीं। वामन के पूर्ववर्ती भामह और उसके टीकाकार भट्टोद्भट गुण और अलंकार में भेद नहीं मानते, उनमें भेद मानना भेड़चाल मात्र हैं। यथा-'समवायवृत्या शौर्यादय: संयोगवृत्या तु हारादयः इत्यस्तु गुणालंकाराणां भेदः। ओजप्रभृतीनामनुप्रासोपमादीनां चोभयेषामपि समवायवृत्यास्थितिरिति गड्डलिकाप्रवाहेणैवैषां स्थिति:।' मम्मट ने भट्टोद्भट के इस मत को मान्यता नहीं दी और वामन के मत में से केवल गुणों की ही अनिवार्यता उन्होनें स्वीकार की। गुण शोभाजनक नहीं उत्कर्ष के हेतु हैं और वे शब्दार्थधर्म नहीं, आनन्दवर्धन के अनुसार ही रस के धर्म हैं। अलंकार अवश्य शब्दार्थ के धर्म हैं 'ये रसस्यांगिनो धर्माः शौर्यादय इवात्मनः । उत्कर्षहेतवस्ते स्युरचलस्थितयो गुणाः ।। (का.प्र.सूत्र-८६) उपकुर्वन्ति तं सन्तं येऽगद्वारेण जातुचित् । हारादिवदलंकारास्तेऽनुप्रासोपमादयः ।। (का.प्र.सूत्र८७) शोभाकर आनन्दवर्धन के मत का अवलम्बन करते हैं, और ओज, प्रसाद और माधुर्य गुणों को रस का धर्म बताते हैं। ये गुण रस में अनिवार्य रूप से रहते हैं। वे कहते हैं- 'काव्यजीवितहेतुभूतत्वेन रसादेः अङ्गिमत्वम्। तद्गताश्च ओजप्रसादादयो गुणा:'। अलंकार उस काव्यजीवित का शोभाधायक तत्त्व हैं। इसके साथ उसका सबंध उपस्कार्य-उपस्कारक का हैं 'तस्यात्मभूतस्य रसादेः उपस्कारकत्वेन गताः अलंकाराः।' किन्तु चित्रकाव्य के निराकरण में शोभाकर ने एक और रोचक बात कही है कि अलंकार्य-अलंकार का सम्बन्ध अनिवार्य हैं। इस प्रकार अलंकार रस के नित्यधर्म हो जाते हैं। ध्वनिकार ने भी अलंकार की शब्दार्थनिष्ठता उपचार से ही माना हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014030
Book TitleShramanvidya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBrahmadev Narayan Sharma
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year2000
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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