SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमणविद्या १०९ कसायपाहुड की प्राचीन परम्परा के सन्दर्भ में उक्त दोनों आचार्यों का अध्ययन विशेष उपयोगी सिद्ध होगा। यतिवृषभ ___ कसायपाहुड के गाहासुत्तों पर यतिवृषभ ने छह हजार श्लोक प्रमाण 'चुण्णिसुत्तों की रचना की थी । जयधवला टीका के साथ 'चुण्णिसुत्त' उपलब्ध हैं । कसायपाहुड को गाथाओं और यतिवृषभ के चूर्णिसूक्तों का पं० हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री ने स्वतन्त्र रूप से सम्पादन किया था। वीर शासन संघ, कलकत्ता से इसका प्रकाशन हुआ है। इसकी प्रस्तावना में यतिवृषभ और उनके चूणिसूक्तों पर विस्तार से विचार किया है। पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री ने 'जैन साहित्य का इतिहास' ग्रन्थ में यतिवृषभ के समय और रचनाओं आदि पर विस्तार पूर्वक विचार किया है। विशेष अध्ययन करते समय इस सामग्री का आलोडन आवश्यक है। यहाँ संक्षेप में कसायपाहुड के सन्दर्भ में यतिवृषभ और उनके चूणि सूक्तों पर विचार अपेक्षित है। जयधवला टीकाकार के अनुसार यतिवृषभ ने कसायपाहुड के गाहासुत्तों पर छह हजार श्लोक प्रमाण चूणिसूक्तों की रचना की। ये प्राकृत गद्य में निबद्ध हैं। टीकाकार के अनुसार आचार्य गुणधर ने सोलह हजार पद प्रमाण पेज्जदोसपाहुड को एक सौ अस्सी सुत्तगाथाओं में उपसंहृत किया था। आचार्य परम्परा से आती हई वे सुत्तगाहा आर्यमंक्षु और नागहस्ति को प्राप्त हुई। उन्हीं से सम्यक् रूप से सुनकर यतिवृषभ ने चूणिसूक्तों की रचना की। इस सन्दर्भ में यतिवृषभ को आर्यमंक्षु तथा नागहस्ति का शिष्य बताया गया है। आर्यमक्षु और नागहस्ति का सन्दर्भ दिगम्बर साहित्य में अन्यत्र अनुपलब्ध है। श्वेताम्बर पट्टावलियों में आर्यमंगु तथा नागहस्ति के विषय में जो जानकारी मिलती है, उसके साथ उनके समय पर विचार करना अपेक्षित है। इससे यतिवृषभ का समय निर्धारित करने में मदद मिलेगी। __ कषायपाहुड की टीका में यतिवृषभ को प्राचीन कर्मसिद्धान्त के एक महान् वेत्ता में रूप में प्रस्तुत किया गया है। चूणिसूक्त इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। चूणिसूक्तों के अध्ययन से यह भी ज्ञात होता है कि यतिवृषभ मात्र कषायपाहुड के ही विशेषज्ञ नहीं थे, प्रत्युत वे महाकर्मप्रकृतिपाहुड के भी विशेषज्ञ थे। पंडित हीरालाल शास्त्री ने लिखा है कि 'चूर्णिकार के सामने कर्मसाहित्य के कम से कम षड्खंडागम , कम्मपयडी, सतक और सित्तरी ये चार ग्रन्थ अवश्य विद्यमान थे।२३ इन ग्रन्थों के तुलनात्मक सन्दर्भो पर भी उन्होंने विचार किया है। यतिवृषभ का दूसरा प्राकृत ग्रन्थ तिलोयपण्णत्ति है।२४ वर्तमान में जो २३. कषायपाहुडसुत्त, प्रस्तावना, वीर शासन संघ, कलकत्ता । २४. तिलोयपण्णत्ति, जीवराज जैन ग्रन्थमाला, सोलापुर । संकाय-पत्रिका-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014029
Book TitleShramanvidya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1988
Total Pages262
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy