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________________ किसी भी क्षेत्र में व्याप्त बुराई को जड़ से उखाड़ डालने हेतु किण गया प्रयत्न कान्ति कहलाती है। जब बुराई का समूल उच्छेद हो जाता है तो वह क्रान्ति सफल कहलाती है । महावीर ने क्रान्ति के लिए व्यक्ति तथा समष्टि दोनों क्षेत्रों को चुना । व्यक्तिगत क्रान्ति में वे पूर्ण सफल हुए क्योंकि उन्होंने प्रात्मिक मलों को दूर कर उसका शुद्ध स्वरूप प्राप्त कर लिया था। समष्टि के उत्थान के लिए उन्होंने अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का मार्ग बताया तथा समाज संगठित रूप से एक परिवार को भांति रह सके इसके लिए चिन्तन के क्षेत्र में उन्होंने अनेकान्त तथा वाणी के क्षेत्र में स्याद्वाद का प्रतिपादन किया। निश्चय ही ये सिद्धान्त हैं जिनका पालन यदि समष्टि करे तो धरा पर ही स्वर्ग का निर्माण हो सकता है, उसे अन्यत्र ढूढने की आवश्यकता नहीं। —पोल्याका महावीर : प्रात्मक्रान्ति और जनक्रान्ति के प्राईने में .डॉ० नरेन्द्र भानावत प्राध्यापक हिन्दी विभाग राज. वि. वि., जयपुर चैत्र शुक्ला त्रयोदशी महावीर का जन्म दिवस है । इसी बिन्दु पर व्यक्ति और समाज, अात्म धर्म है । उन्होंने साधना और पुरुषार्थ के बल पर आत्मा और समाज धर्म परस्पर मिलते हैं और एक दूसरे पर लगे समस्त कर्मदलिकों को नष्ट कर, निर्मल को पुष्ट और कल्याणक बनाते हैं । और निर्विकार परमात्म स्थिति प्राप्त कर अपने जैन धर्म में मुख्य बल अात्म जागृति पर दिया जन्म को सार्थक बनाया। महावीर ने यह सार्थकता गया है । व्यक्ति तब तक देहासक्त अथवा देहपरायण अर्थात् निर्वाण जिस दिन प्राप्त किया उसे हम बना रहता है, तब तक उसकी जागृति वारतविक दीपावली पर्व के रूप में मनाते हैं। जन्म से निर्वाण जागृति नहीं कही जा सकती। वह एक प्रकार की की यह साधना अथवा यात्रा एक प्रकार से सुषुप्ति की अवस्था है। जब वह देहातीत होकर जागरण की यात्रा है। यह जागरण मुख्यतः आत्मपरायण बनता है तब उसमें वास्तविक जागृति आत्म केन्द्रित होकर भी जनजागृति का मूल थिरकने लगती है । पर्युषण पर्व की साधना और 1-2 महावीर जयन्ती स्मारिका 78 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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