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________________ के विरोध में खुलकर अपने विचार व्यक्त किये । 'जैन धर्म की उदारता, शीर्षक पुस्तक जैन धर्म का सच्चा और उदार स्वरूप जनता के समक्ष रखा । साहित्य सेवा के संदर्भ में आपको 'वीर निर्वारण भारती' पुरस्कार से सम्मानित किया गया । शिवपुरी के श्री नेमीचन्द गौंदवाले आपका अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित कर रहे थे लेकिन दैव को यह स्वीकार नहीं था अब वह स्मृति ग्रंथ होगा ।' प्रज्ञा चक्षु पं० सुखलाल जैन प्रज्ञा चक्षु पं० सुखलालजी का दुःखद देहावसान 97 वर्ष की अवस्था में गत 2 मार्च को हदमाबाद में हो गया । ग्राप पिछले एक सप्ताह से किडनी एवं रक्तचाप के रोग विशेष पीड़ित थे । उपलब्ध श्रेष्ठ उपचार व्यवस्थानों के पश्चात भी प्रापको बचाया न जा सका । पण्डितजी भारतीय दर्शन शास्त्र और संस्कृति के प्रकाण्ड पण्डित, समर्थक, चिन्तक और सुप्रसिद्ध लेखक थे । सरस्वती के इस वरद पुत्र के अवसान पर देश के चिन्तन जगत में गहरा शोक छा गया । आपके निधन पर प्रधानमन्त्री श्री मोरारजी भाई देसाई ने एक शोक संदेश में कहा कि पं० सुखलालजी के अवसान से देश ने भारतीय विद्या के एक अत्यन्त विद्वान और असाधारण दार्शनिक को खो दिया है । पण्डितजी ने गांधीजी के एक साथी की तरह गुजरात विद्यापीठ के पुरातत्व मन्दिर के विकास में सराहनीय सहयोग दिया था । पंण्डितजी अपने पीछे विद्या और वर्चस्व की ऐसी विरासत छोड गये हैं जिसका लाभ इस देश के नागरिकों को सदैव मिलता रहेगा । आपकी प्रेरणा से ही पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध हिन्दू विश्वविद्यालय और गुजरात विद्यापीठ के माध्यम से को समर्पित किये जो प्राज आपके प्रभाव की पूर्ति में प्रागे शोध-खोज के मार्ग दर्शक होंगे । महावीर जयन्ती स्मारिका 78 में श्रापने Jain Education International संस्थान की स्थापना हो सकी काशी अपने अनेकों विद्वान शिष्यरत्न समाज For Private & Personal Use Only ग www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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