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________________ (5) राग कानरो ठटनि ठटी विठते की तें जड़ मूरी खोयो । जप तप करि करि देह सताई करि अधिकाई सहज रूप नहि जोयो । उपसम पानि कियो नहीं कबहुं अंतरमल नहीं धोयो । होत कहा अब पछतातनि धीरज सो न दियो लख ज्यों कन चोयो । (6) राग कानरो दया करिए दीनानाथ गुसाईं तुम तजि हम कहं जाई । व्यापत कर्म भरम उर अंतर कर उपमार विकार मिटे ज्यो । तुम प्रभु मेरे हो सहाई ||1|| तेरो तो दरसन दुरित रहत छिन भोहन भयन वपुरारि पुकाई 11211 तकि प्रायो चरन सरन सरन जन टोडर अंत न कहूं वसमाई ||3|| (7) राग कान जान्यो न जनमु जंजाल । मै जा तनि काल अनादि गयो ऐसी वार्तानि | काहू सौं कहत तात काहू सौं कहत मात कबहूं कि रीझि रह्यो त्रिय वार्तानि मोह्यो तू बा जे साज गजराजन लालच लोभ फिरयो तुझ साथ हि विसरि गयो सु जगत्त को जीवन रामा के रंग रचौ दिन रातनि ||4| अजहूं चेत अज्ञान मूढमति पाछे होत कहा पछतातनि ॥5॥ टोडर ब्रह्म भगवत भजन बिनु भटकत भ्रमत छीन भयो गातनि ।। 61 ( 8 ) पद - 2-142 Jain Education International चेतन मानो साढ़ी बतिया । यो है देही तेरे लारेन चलसी तू पोसे दिन रतिया | चेतन० पाप प्रगासी नरक परासी श्रवस होगे ततिया चितन०| काल फिर तु मारन भाई तू सोवै दिन रतिया | चेतन० | मानस देही श्रावक कुल पाई अव आए सुभगतिया । चेतन ०१ टोडरमल भगवंत भजन कर कारन आनंद छतिया | चेतन ० For Private & Personal Use Only महावीर जयन्ती स्मारिका 78 www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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