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________________ बहु मेवा पकवान मिठाई लीज प्राण अधार ॥6॥ हरषत तात मात छवि निरखत पुलकित गात अपार । सेवा करें सब कर जोरे शक्र रहत दरबार ।।7। कीजो कृपा कृपानिधि सागर सुगति मुकति दातार ।। मांगत चरन सरन जन टोडर ज्यों भव उतर पार ।।8।। (2) राग विरावर मन सिख मानत क्यों न तू हो। क्यों न अज्ञान होतहि सिखवत हो दिन मान । रचि रह्रयो तात मात सुत भ्रातनि यह रंग रहत रहत न अयान |॥1॥ रंग कर राम नाम तज स्यामै उर रंग सकल जु होत विकाम । धन यौवन वनितहिं कत भूलत यह कछु लगत न साथ निदान ।।2।। सो ए तेरा कलहतु जैसे संपति याग तै कछु न विहान । जप तप यतन विना जन टोडर अब सुन पावत क्यों निर्वान ॥3॥ (3) राग विरावर-- विषफल काहे को भखत गंवार मन तू समझायौ के वार । काल अनादि बंध्यो इन्द्रिन संग अब तू चेतत क्यों न सवार ॥1॥ नीच निगोद फिरयौ चारों गति तजत न अजहूं मनहि विकार । अपनो ग्रह विसराइ चतुर तूं घर धर भटकत द्वारनि द्वार ।।2।। भवसागर बूड़त कत नागर उपजत तरल तरंगम पार । मज्जत सेष (?) जंतु खेव (ट)? वस हो फिरफिर बूडत कारी धार ।।3।। की जै कृपादीन टोडर खों विनती सुन प्रभु जगत अधार । विन भगवंत भजन जे ऊरे ताकी छवी परत किनि छार ।।4।। (4) पद सकल देवन सिरताज साहिब नेमिनाथ मेरो। सु नियत वेद पुरान ध्यान जोगी जन जाप जपत रहत उर अंतर, तातें सरन तक्यों (देखा) तेरों ॥1॥ जानो न कुमत कुदेव कुमारग कुगुरु की सीख बहुत कर पेरो ।।2।। जानिवौ जो प्रभु अबकें तारि हो मो सो पतित अनघेरो ।।3।। भयो अधीन छीन कर्मन वस राखत क्यों न चरन हूते नेरो। वगसत गुनहू गुनहिं जन टोडर तो सो धनी मो सो चेरी ।।4।। महावीर जयन्ती स्मारिका 78 2-141 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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