SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोमलों में अंग्रेजों के अधिकार की तजबीज की की लहर भी बढ़ी । रावल के खिलाफ चार्ज लगाइससे राजमाता नाराज हुई । संघी झूताराम, कर राजमाता ने एक सर्कुलर घुमाया जिस पर दीवान अमरचन्द प्रादि राज्य के उच्चाधिकारियों ने अनेक ठाकुरों आदि के हस्ताक्षर थे । उधर पोलिभी इसका समर्थन नहीं किया । फलतः राज्य में टिकल एजेण्ट ने रावल के पक्षकारों के हस्ताक्षर दो राजनैतिक पार्टियां बन गईं । एक तरफ अंग्रेज कराये । संघी यात्रार्थ बाहर चले गये और ठाकुर और रावल बेरीसाल सिंह आदि, दूसरी ओर स्व- मेघसिंह डिग्गी चले गये। रावल को अग्रेजों का तन्त्रता प्रमी राजमाता, संघी भूताराम और संरक्षण मिला। उनके सहयोगी कई मुत्सद्दी राजपूत सरदार आदि। राज्य में राजनैतिक उथल पुथल होने लगी। कभी सन् 1824 में राजमाता ने राज्य की विभिन्न रावल का प्राबल्य और कभी संधी का। रावल । बटेलियन्स को तथा समस्त ठाकुरों को शेखावतों ने पोलिटिकल एजेन्ट को दरखास्त दी कि संघी और उसके साथियों को हटाया जाय और अंग्रेज को एकत्र किया और पराधीनता को उखाड़ फेंकना चाहा । अंग्रेजों ने नसीराबाद से फौजें बुलाकर फोर्स की मदद चाही-पर अग्रेज नीतिज्ञ थे। विद्रोह को दबाने का प्रयत्न किया पर फौजें हटी उनने इसके लिए मना किया । उनने भेद नीति ही अपनाई । लाचार रावल जी को संघी को साथ नहीं । रावल शहर छोड़कर अंग्रेजों की शरण में लेकर कार्य करना स्वीकार करना पड़ा। गया और उसे संरक्षण दिया गया। रेजीडेन्ट प्राक्टरलोनी ने प्राकर राजमाता से बात की और उनकी शर्ते मानी। रावल जी को हटाकर डिग्गी राजमाता रावल से और नाराज रहने लगी। ठाकुर को मुखिया बनाया। संधी हुकमचन्द को फरवरी सन् 1823 में रेजीडेन्ट के आगमन से उनका नायब और दीवान अमरचन्द को रेवेन्यू पूर्व राजमाता ने रावल को दरबार में शामिल का अधिकारी बनाया। होने के लिए इन्कार किया और कौंसिल में मेघसिंह डिग्गी वालों को लिया। रावल ने उस समय जो दीवान पद पर था—इससे अपना अपमान संघी भूताराम की योग्यता के सब कायल माना । उसने पोलिटिकल एजेण्ट के द्वारा भूता थे । राजमाता ने उसे बुलाना चाहा पर पोलिटि. राम एवं मेघसिंह को हटाने के लिए राजमाता पर कल एजेण्ट सहमत नहीं हुप्रा । वह संघी को दबाव डाला। जब राजमाता इससे सहमत न । 1 खतरनाक व्यक्ति मानता था। वह जानता था कि हुई तो संघी को स्तीफा देने के लिए अंग्रेजों ने शासनपटु, निर्भाक और आजादी का दीवाना संघी बाध्य किया। निदान संघी ने त्यागपत्र दिया। यदि आ जाएगा तो हमारे पंजे उखाड़ फेंकेगा । स्वतन्त्रता प्रेमियों को समाप्त करने के लिए इसलिए उसे जिलावतनी का आदेश दिया गया । दूसरा प्रहार ठा. मेघसिंह पर किया गया । लेकिन जब पो. एजेण्ट का तबादला हुआ तो उसने उनका लाम्बा का किला हस्तगत करने के लिखा कि भूताराम के न पाने की कैद हटा ली लिए नसीराबाद स्थित ब्रिटिश ब्रिगेड बुलाकर, जावे तो ठीक है क्योंकि राज्य का कार्य अब भी लडाई लड़कर खाली कराया गया। इससे जहां उसकी सलाह से होता है और वह यहां रहे तो राज्य में अंग्रेजों का दबदबा बढ़ा वहां स्वतन्त्रता उत्तरदायी तो रहेगा। 2-128 महावीर जयन्ती स्मारिका 78 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy