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________________ सन् 1825 में कैप्टिन रेपर के स्थान पर रानी चन्द्रावत जी के साथ 1832 में हो गया था। कैप्टिन लौ आये । रावल ने नाबालिग राजा को पर राजमाता का स्वर्गवास हो गया । होनहार बाहर लाने और माजी को बे अख्तियार करने के की बात कि 1835में नवयुवक राजा जयसिंह का लिए एजेन्ट पर दबाव डाला। अक्टबर 1826 स्वर्गवास हो गया। लोगों को मौका मिला दीवान में दोनों पाटियों की तरफ से पांच-छ हजार संघी झूताराम दीवान अमरचन्द प्रादि न्याधिकाव्यक्ति एकत्र हए पर नतीजा कुछ नहीं। चार्ल्स रियों को बदनाम करने का। उन पर राजा को मेटकाफ ने राज्य के सरदारों की मीटिंग बलाई। 50 मारने का दोषारोपण किया गया। सांप्रदायिकता में से 28 राजमाता के पक्ष में और 22 रावल के उमारी गई । जैनों के साथ बुरा बर्ताव हुआ। पक्ष में रहे। माजी सफल हुई । कैप्टन लौ के समय में अंग्रेजी हुकूमत ने संघी झूताराम को बुलाया। . जयसिंहजी के स्वर्गवास पर उनकी रानी संघी ने कई दिन बाद काम सम्भाला । के.लौ के बाद चन्द्रावत जी माजी मुख्तार हुई । वह स्वतन्त्रता सर जार्ज क्लार्क आये और उसने संघी को दीवान प्रभी थी। अग्रेजों का आधिपत्य इन्हें भी अपनी बनाया। दि.25-4-1828 को गवर्नर जनरल कौंसिल अमित सास की तरह पसन्द न था । फलतः ये भी रावल ने सरक्लार्क ब्रक को लिखा कि रानी के पक्षकारों जी के खिलाफ और संघी झूताराम के मुत्राफिक के बिना मिनीस्टरी चल नहीं सकती, उससे थी। कई इतिहासकारों ने संघी को हत्यारा आदि मुल्क की बरबादी हो रही है और हमारा खिराज शब्दों से व्यवहृत किया है पर साथ ही यह भी भी नहीं मिल रहा है। झूताराम की योग्यता के । लिखा है कि इसका कोई सबूत नहीं । यदि संघी सम्बन्ध में कोई शक नहीं है और यह भी उम्मीद जयसिंह का हत्यारा होता तो उनकी रानी चन्द्राहै कि वह जनता की भलाई एवं हमारी हुकूमत वतजी इनके पक्ष में कैसे होती? के हक में कार्य करेगा। राजा के मरने के बाद संघी ने स्तीफा पेश ___ संघी ने प्रधानमंत्री का कार्य संभालते ही किया और राज्य कार्य छोड़ धार्मिक जीवन व्यतीत समस्त राजपूत सरदारों से जो बिखरे हुए थे- करने की इच्छा व्यक्त की पर महारानियों ने इसे नाराज थे-संपर्क स्थापित किया। तीन वर्ष में स्वीकार नहीं किया। विपक्षी और अंग्रेज यह केवल रावल बैरीसाल के अतिरिक्त समस्त ठाकुरों चाहते ही थे। कर्नल पाल्स एजेन्ट गर्वनर जनरल को रजामन्द कर लिया । रावल को भी समझाया राजपूताना ने ऊपर से आज्ञा प्राप्त कर संघी को कि मिलकर कार्य करे। संघी ने राज्य का सारा जयपुर से चले जाने के लिए कहा । वे प्रामेर में कर्जा चुकाया, अग्रजों का खिराज भी चुकता अपने मकान में रहने लगे। सत्ता से हट जाने पर किया। शेखावाटी का सुप्रबन्ध करने हैतु कर्नल विरोधियों की काफी बन पड़ी । संघी को पामेर लाकेट को भेजा । फलतः लूट खसोट बन्द हुई। में उनके घर से बलदेवजी के मन्दिर में भेजा गया संघी का प्रभाव और राज्य संचालन पद्धता देख और फिर दौसा में नजरबन्द कर दिया। उनके विरोधियों ने सन् 1831 में उसे मारने तक का भाई हुकमचन्द को आगरा जाने की अनुमति दे दी षड्यन्त्र किया पर वे सफल नहीं हुए। गई। पर धन दौलत-मार्ग व्यय तक नहीं ले जाने दिया। उनके परिवार वाले काफी परेशान हुये। जयपुर नरेश युवा हो गए थे। विवाह भी वे प्रागरा जाकर रहने लगे जिनके गंशज महावीर .... महावीर जयन्ती स्मारिका 78 2-129 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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