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________________ महमदसा पतिसाह, राज करि है सुचि कथौ । नीतिवंत बलवंत, न्याय बिन लेत न प्ररथी । ताके राज मारि, ग्रंथ प्रारम्भरु कीन्हो | परको दुख सोक, कभू हम कोई न लीन्हो || इह विचार राजा त', इतनी ही उपगार है । कोऊ दुष्ट पुरुष दण्डि न सकेँ, जिनमत को विस्तार है 11700 | सहर मध्य इक वणिक वर, साह् सुखानन्द जानि । ताका गेह विषै रहै, गोकुलचन्द सुजान 11701 तिन ढिंग मैं जाऊ सदा, पढू सुमाख सुभाष । जिनको वर उपदेश लै, मैं भाषा वरन बनाय 1170211 संवत् सतरास ग्ररू ग्रसी, सु बैसाख तीज वर लसी । शुक्रवार प्रति ही वर जोग, सार नखत्तर को संजोग ||7041 श्वेताम्बरो गोकुलचन्द्र नामा, महाविबेकी सगुणैर्गरिष्ठः । पर्वोपवासं कुरुते स्वभावात् तस्योपकण्ठं श्रुतवान् भूवर ||809 | इदं सुशास्त्रं सुरसेव्यमानं मया लिखित्वा धरितं प्रमोदं । समर्पितं गोकुलचन्द्र हस्ते अस्य प्रवृत्तिः करणाय नित्यम् ॥ - लि. मोहनराम संगहीजी श्री भगवानदासजी पठनार्थं मेवातिनई पंडमध्ये हर्षपूरे... दोहा : पूर्ण शासनकाल में की थी । कवि के अनुसार जयसिंह के थी, जिसके प्रभाव से कई किसी से पीड़ित नहीं था । 2. - खुशाल कवि ने यह रचना ढूंढार प्रदेश के महाराजा सवाई जयसिंह प्रथम के सुख-शान्तिशासन काल में जैन धर्म की अतिशय महिमा पोथीखाने का 'खासमोहर संग्रह' जो ग्राम्बेर एवं जयपुर के शासकों का निजी पुस्तकालय रहा है, जैन एवं जैनेतर सभी धर्मों के साहित्य का विपुल भण्डार है । यह वस्तुतः उन शासकों के सर्वधर्म अनुराग एवं समभाव, विद्याप्रेम और साहित्य - संरक्षण तथा संबर्द्धन की उत्कट विशुद्ध भावना का प्रतीक है । 106 पोथीखाने के इस 'खात मोहर संग्रह I के ग्रन्थों की सूची का प्रकाशन "लिटरेरी हेरीटेज ऑफ दी रूलर्स ऑफ ग्रम्बेर एवं जयपुर " नामक अपनी पुस्तक में पं. गोपालनारायण बहुरा ने किया है । अन्य संग्रहों का प्रकाशन अभी नहीं हो पाया है। उनकी सूचि प्रवश्य तैयार की जा रही है । उनका प्रकाशन एवं पोथीखाने के समग्र साहित्य भण्डार की वर्ण्य विषयक सूचियों का पुनरीक्षण प्राचीन अज्ञात ऐतिहासिक घटनाचकों के तथ्यान्वेषण के अध्ययन में महत्वपूर्ण एवं उपयोगी सिद्ध होगा । 1. Literary of Heittage the Rulers of Amber and Jaipur by Shri G. N. Bhaura, ब्रह्मजिनदास : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, लेखक, लेखक का शोध प्रबन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only महावीर जयन्ती स्मारिका 78 www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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