SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयपुर से करीब १० मील दूर मोहाना रोड प रनेक्टा ग्राम के निवासी पाटणी सवाई जयसिंह के राज्य काल में ही जयपुर मा बसे थे। अपने पूर्वज खिन्दू के नाम पर ये खिन्दूका कहलाते हैं। कहते हैं ये ६० भाई थे । आगे चल कर इसकी कई शाबा, प्रशा बाएं हुई यथा --नुशरफ, दीवाण, तोतुका प्रादि । यात्रा प्रकाश के रचयिता रावव पाटणी अपने पूर्वज साँगा' के नान पर सांगा का कहलाते हैं। इस पुस्तक में वारणा नरेश जगासह तृतीय है जो किसी षडयंत्र का शिर होकर काल कलित हए थे। यात्रा का स्थान फतह टीवा सांगानेर दरवाजे गहर मोती डूगरी रोड पर । राजा की खास पोशाक लिए सामने है आने वाले 'सिंघी' थाराम ज्ञात होते हैं जिनका विस्तृत वर्णन पाठक इसही स्मारिका में अन्यत्र पडेंगे। 'मनालाल' चारित्रसार, प्रवन चरित्र आदि प्रयों के रचनाकार मनालाल सांगाका खिन्दू का मालूम होते हैं । विद्वान निबंधकार ने महावीर तीर्थ क्षेत्र कमेटी को अपनी रचना में जो सुझाव दिया है हम उसकी पूर्ति को कामना तो करते हैं किन्तु वह सफल होगी ऐसी आशा कम ही है। . --पोल्याका राघव पाटनी रचित 'यात्रा प्रकाश' • श्री अगरचन्दजी नाहटा, (इतिहासरत्न, सिद्धान्ताचार्य, शोधमनीषी, विद्यावारिधि) बीकानेर । राजस्थान की राजधानी जयपुर जब से बसा, कासलीवाल का ग्रंथ प्रकाशित हुया है उसी तरह तभी से और उससे पहले बामेर में दिगम्बर समाज जयपुर राज्य या क्षेत्र में रचित जैन साहित्य का अच्छा प्रभाव रहा है । आमेर में दि० भट्टारको सम्बन्धी एक स्वतंत्र ग्रन्थ प्रकाशित होना चाहिए। की गद्दी थी। उनका शास्त्र-भण्डार अभी जैन जयपुर के कई राजानों के दीवान आदि कई साहित्य शोध संस्थान, महावीर तीर्थ क्षेत्र कमेटी के उच्च पदों पर दि० जैन बन्धु थे अतः राजनैतिक संग्रह में सुरक्षित है। उस शास्त्र-संग्रह में तथा क्षेत्र में भी उनका विशिष्ट स्थान रहा है । यद्यपि जय ,र के अन्य शास्त्र-भण्डारों में जयपुर क्षेत्र के जयपुर के जैन दीवानों सम्बन्धी एक छोटी पुस्तक जैन कवियों एवं विद्वानों के रचित गद्य-पद्यात्मक निकली है पर वह पर्याप्त नहीं है । वीर वाणी प्रचुर साहित्य उपलब्ध है । उस साहित्य का प्रमाण पत्रिका के प्रारम्भिक वर्षों में जयपुर के जैन दीवानों लाखों श्लोकों परिमित है अत: जिस प्रकार सांभर और साहित्यकारों सम्बन्धी काफी महत्वपूर्ण लेख प्रदेश एवं जनों के सम्बन्ध में डा० कस्तूरचन्द प्रकाशित हुए थे । इधर कुछ वर्षों में कोई नई महावीर जयन्ती स्मारिका 2-107 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy