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________________ यह हर्ष एवं विस्मय का विषय है कि 17वीं शता के प्रागरा निवासी बनारसीदास की सर्वाधिक पचास रचनाएं एक स थ एक वेष्ठन में इस संग्रह में सुरक्षित हैं। इनमें कई रचनाएं तो जैन भण्डारों में भी नहीं हैं । लेकिन इस कवि का प्रसिद्ध ग्रात्मवरित्र काव्य " अर्द्ध कथानक " जो प्रव प्रकाशित है, इस संग्रह में नहीं मिलता। कुछ भी हो बनारसीदास की सर्वाधिक संख्या में जो कृतियां यहां उपबन्ध हुई हैं - वे उनके व्यक्तिव एवं कृतित्व पर नयी दिशा एवं तथ्य देगी जबकि इस कवि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर डॉ. देवेन्द्र कुमार जैन का गो प्रवन्ध प्रकाशित हो चुका है। यह विचारणीय तथ्य है कि उक्त संग्रह में जहां प्रागरा के बनारसीदास एवं भूवरदास तक की कृतियां उपलब्ध होती हैं । वही ज्यपुर राज्य के अन्तर्गत 17वीं एवं 18वीं शता में होने वाले जयपुर के ही कई प्रसिद्ध जैन कवियों में केवल खुशाल कवि एवं दौतलराम ( बसवा ) के केवल हरिवंश पुराण भाषा ( वि सं 1780) पद्मपुराण भपा ( वि सं. 1783) और पुष्याश्रव कथा बालावबोध ( र. का. 1770 - लिका. 1816) ग्रंथ ही मिलते हैं । यद्यपि जोधराज गोत्रीका, दुलीचन्द साह, राघव पाटनी (खिन्दूका ) मनोहर खण्डेलव ल की भी एक-एक रचनाएं मिलती हैं, परन्तु टोडरमल, जयचन्द छाबड़ा, सदासुख कासलीवाल आदि कई ऐसे कवि प्रसिद्ध हैं जिनकी कृतियां खास मोहर संग्रह I में नहीं है। समय की दृष्टि से प्राचीन ग्रंथ छील कवि का -' -' दूहा पंच सहेलीरा' वि. सं. 1575 का मिलता है । इसकी संग्रह में 5-7 प्रतियां है। अधिकांस हिन्दी कृतियां 17वीं एवं 18वीं शताब्दी की हैं। जयपुर नगर की स्थापना (वि. सं. 1784 ) से चार वर्ग पूर्व सं हरिवंश पुराणा भाषा (ब्रह्मजिनदास के संस्कृत के हरिवंश पुराण यहां प्रस्तुत है - 1780 में रचित खुशाल कवि के पर आधारित) का अन्तिम भाग सहर जिहानाबाद में, जयसिंह पूरी सुधान । मैं बसिहो सुख सौं सदा, जिन सेऊ' चित श्रानि ॥ 691|| मेरी बात सुनी प्रबै भविजीवन मन लाय । 2 Jain Education International कालो जाति खुस्याल सुभ, सुन्दर सुत जिन पाय 1169211 देस ढूंढाहर जागो सार, ता धर्मतणो अधिकार | विनसिंह सुत जयसिंह राय, राज करें सबकु सुखदाय 116931 देस तरणी महिमा प्रति घणी, जिन गेहाकरि सुन्दर बी । जिन मन्दिर भवि पूजा करें केइक व्रत ले केइक धरै 16941 जिन मन्दिर करवावं नवा, सुरंग विमान लगि विरछा | रथयात्रादिक होत बहु जहां, पुण्य उपावै भविव तह ||6951 इत्यादिक महिमा जुन देश, कहि न सकू मैं और प्रसेस । जामैं पुर सांगात्रति जाति, धर्म उपार्जन को वर श्रांत ||696 | महावीर जयन्ती स्मारिका 78 For Private & Personal Use Only 2-105 www.jainelibrary.org
SR No.014024
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1978
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1978
Total Pages300
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size7 MB
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