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________________ एक सत्य का द्वार 2-36 Jain Education International - श्री भवानीशंकर, जबलपुर एक दृष्टि है जिसमें दृश्य सभी चलते हैं. एक हृदय है जिसमें सुख-दुख सब पलते हैं. एक प्राइना है जिसमें हर बिम्ब उभरता. एक बिन्दु है जिसमें सिन्धु सभी ढलते हैं. एक लहर है जिसमें दुनिया लहराई है. एक सतह है जिसमें असीम गहराई है. एक बूंद है जो हर प्यास बुझा देती है. एक किरण है जो सारे तम पर छाई है. एक सत्य का द्वार युगों से खुला हुआ है. एक प्रारण सबकी साँसों में घुला हुआ है. लेकिन हम सब भूल गए हैं उस दीपक को जो कि हमारे ही कमरे में जला हुआ है. हम अतृप्तियों को जीते हैं जीवन-जल में. हम डूबे रहते हैं आने वाले कल में. कागज के फूलों का है विश्वास हमारा. हम सुख की सुगन्ध अनुभव करते हैं छल में. मृगमरीचिकाओं में शान्ति नहीं मिलती है. विश्वासों की उम्र यहां तिल-तिल जलती हैअंधकार के पार द्वार खोलो प्रकाश का सुबह जहां विस्तार दिवस का ले चलती है। For Private & Personal Use Only महावीर जयन्ती स्मारिका 77 www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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