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________________ प्राधार है। अस्तित्व गुण प्रत्येक द्रव्य की सत्ता अत्यान्ताभाव होने के कारण भी उसकी स्वतन्त्रता का प्राधार है 'पौर द्रव्यत्व गुण परिणमन का। अखण्डित रहती है। जहां अत्यन्तभाव द्रव्यों की मगुरूलघुत्व गुण के कारण एक द्रव्य का दूसरे में स्वतन्त्रता की दु'दुभि बजाते हैं । प्रवेश सम्भव नहीं है। सद्भाव के समान प्रभाव भी वस्तु का धर्म जैन दर्शन के स्वातन्त्र्य सिद्धान्त के प्राधार है। कहा भी है : भूत इन सब विषयों की चर्चा जैन दर्शन में विस्तार से की गई है। इनकी विस्तृत चर्चा "भवत्यभावोऽपि च वस्तुधर्माः ।"7 करना यहां न तो संभव है और न अपेक्षित । प्रभाव चार प्रकार का माना गया है : जिन्हें जिज्ञासा हो जिन्हें जैन दर्शन का हार्द प्राक्भाव, प्रध्वंसाभाव, अन्योन्याभाव और अत्यन्ताभाव जानना हो, उन्हें उसका गम्भोर अध्ययन करना एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य का दूसरे द्रव्य में चाहिए। 1. प्राचार्य अमृतचन्द्र ; समयसार कलश 168 2. भावना द्वात्रिंशतिका (सामायिक पाठ) छंद 30-31 3. प्राचार्य अमृतचन्द्र : समयसार कलश 200 4. प्राचार्य कुन्दकुन्द : समयसार, बंध अधिकार 5. पाचार्य उमास्वामी : तत्वार्थसूत्र, अध्याय-5 सूत्र -30 6. वही अध्याय-5 सूत्र-38 7. प्राचार्य समन्तभद्रः युक्त्यनुशासन : कारिका 39 महावीर-वाणी १. प्रत्येक प्रात्मा स्वतन्त्र है कोई किसी के प्राधीन नहीं है । २. पात्मा ही नहीं, विश्व का प्रत्येक पदार्थ स्वयं परिणमनशील है। उसके परिणमन में पर पदार्थ का कोई हस्तक्षेप नहीं है। ३. ईश्वर जगत् का कर्ता हर्ता नहीं है। वह तो मात्र ज्ञाता द्रष्टा है। महावीर जयन्ती स्मारिका 77 1-103 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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