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________________ AAAAAAA 1-104 मतभेद नहीं अब रह पाये Jain Education International Q♡♡♡♡♡♡♡♡♡ * मुनिश्री मानमलजी मतभेद सदा से चलते हैं मन भेद नहीं अब रह पाये 1 मन भेदों के कारण कितने धर्मों धर्मों में द्वन्द्व हुवा परिणाम भयंकर जहरीला बोलो कब उसका बन्द हुवा शोषित की लाल कहानी फिर से न उभर कर मतभेद सदा से चलते हैं मन भेद नहीं अब रह ये पांचों 'गुलियाँ अपना श्रस्तित्व स्वयं का रखती हैं तन पोषण जब करना हो भोजन मिलमिल सब चखती हैं ऐसा ही ऐक्य धर्म जग के नेता फिर दिखलायें मत भेद सदा से चलते हैं मन भेद नहीं अब रह पायें ॥ झाडू का हर तिनका देखो यदि बिखर गया तो मिटता है धार्मिक नेताओ सुनो सुनो युग का स्वर जो अब उठता है -C÷8 आ पाये पाये 11 प्रास्तिकता खतरे में सारी मिल कर चलना श्रब श्रा जाये मत भेद सदा से चलते हैं मन भेद नहीं अब रह पाये ॥ ('अहिंसा वाणी' से साभार ) For Private & Personal Use Only AAAAAAAAAAAAG Swa महावीर जयन्ती स्मारिका 77 AAAAAA www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
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