SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कोई पिता अपने पुत्रों को। माध्यस्थ भाव ही नहीं, वैचारिक सहिष्णुता एवं उदारता का है, शास्त्रों का गूढ रहस्य है, यही धर्मवाद है।" जब संकीर्णता का नहीं विशाल हृदयता का है और यह विचारों में इस प्रकार माध्यस्थ भाव रहेगा या हम विशाल हृदयता या उदारता अनेकान्तवाद का दूसरों के विचारों-मतों को सहिष्णूता से सुनेंगे, मूल है । समझेगे हृदयंगम करेंगे तो सभी प्रकार के वैचारिक संघर्ष नष्ट हो जायेंगे। फिर राजनैतिक प्रजातन्त्र में लोकव्यवहृत भाषा को महत्व मानचित्र पर बड़े-बड़े मतवाद, युद्धोन्मुखी संघर्षों दिया जाता है। किसी एक सीमित विशिष्ट वर्ग को जन्म न दे सकेंगे, वियतनाम या इस्राईल-परब या सम्प्रदाय की भाषा को बहुसंख्यक भाषा-भाषी की रक्तरंजित समस्याएं करोड़ों की जान लेकर स्वीकार नहीं करेंगे। संस्कृत में उपदेश या भाषण समाप्त न होंगे; वह बिना रक्तपात के भी सुलझाई यदि कोई देने लगे तो उससे चंद मुट्ठी भर लोगों जा सकती हैं। प्रजातन्त्र में वादविवाद के द्वारा को ही लाभ मिल सकता है। महावीर ने अपने मोरोकी जाती उपदेशों को पंडितों की भाषा में व्यक्त नहीं किया संसद में विपक्षी दल के मत को भी सत्ताधारी दल वरन् लोकभाषा अर्धमागधी में व्यक्त किया तभी मान देता है । विपक्ष की धारणामों में भी सत्यता उनका प्रचार-प्रसार अधिक हुप्रा और अधिकाधिक का कोई न कोई अंश विद्यमान रहता है । प्राचार्य लोग उनसे लाभान्वित हुए । जहाँ कहीं भी प्रजामणिभद्र का विचार है : तन्त्र है वहाँ का शासन-कार्य बहुसंख्यक लोगों की भाषा में ही चलता है। ढाई हजार वर्ष पूर्व पक्षपातो न मे वीरे न द्वेषः कपिलादिषु । महावीर ने भाषा की समस्या का प्रजातांत्रिक अनुकरणीय निदान प्रस्तुत कर दिया था । युक्तिमद्वचनं यस्य, यस्य कार्यः परिग्रहः । स्त्रियों को दीक्षा देकर उन्होंने एक समानता प्रर्थात् मुझे न तो महावीर के प्रति पक्षपात का प्रजातांत्रित प्रादर्श पेश किया था, उनके शोषण है और न कपिलादि मुनिगणों के प्रति ईर्ष्या द्वेष व परिग्रह को नष्ट कर बहुमान और प्रादर प्रदान है जो भी वचन तर्कसंगत हो उसे ग्रहण करना किया था। शोषित वर्ग को समाज में समान चाहिए । महावीर ने 'यही है' को मान्यता नहीं अधिकार दिलाए, स्वामी-सेवक के, शोषक-शोषित दी, उन्होंने यह भी है' को मान्यता देकर पारस्प. के भेदभाव को नष्ट किया, अपरिग्रह के सिद्धान्त रिक विरोधों तथा मताग्रहों की लोह-शृंखला को द्वारा प्रार्थिक समानता का वह प्रादर्श प्रस्तुत किया एक ही झटके में तोड डाला। उन्होंने सत्य को जो सभी प्रजातंत्र देशों में समाजवाद के नाम से सापेक्षता में देखा और उसे अभिव्यक्ति दी स्याद्वाद अभिहित है । महावीर की विचारधारा प्रजातंत्र की की शैली में । प्रजातन्त्र की पूर्ण सफलता अनेकान्त- बहुमुखी विशेषतामों का अनुपम और सनहितकारी दृष्टि में सन्निहित है। प्राज का युग मताग्रह का संगम है । 1-86 महावीर जयन्ती स्मारिका 71 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014023
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1977
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1977
Total Pages326
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy