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________________ भारतीय चिन्तन परम्परा में नये दर्शन की सम्भावना आचार्य पं० रामप्रसाद त्रिपाठी भारतीय चिन्तनपरम्परा दो धाराओं में प्रवाहित हुई है एक है वेदमूलक धारा, जिसमें न्याय वैशेषिक-सांख्य योग, पूर्वमीमांसा, उत्तर मीमांसा ( वेदान्त ) की चिंतन परम्परायें हैं, दूसरी धारा वह है जो वेदों को प्रमाण नहीं मानती है यह चार्वाक, जैन तथा बौद्ध दार्शनिकों की चिन्तन धारा है। इनमें चार्वाक दर्शन प्रत्यक्षदर्शी एवं भौतिकवादी कहलाता है। अन्य सभी दर्शन परलोकवादी तथा किसी परम सत्य के विवेचक हैं। प्राणियों के जन्ममरण का बन्धन ही दुःख की पराकाष्ठा है, इससे मुक्त होना ही मोक्ष प्राप्ति है, इसके लिये नानाविध उपाय इन दर्शनों ने बतायें है। इन उपायों में सत्यानुष्ठान, अहिंसा, अस्तेय, परोपकार आदि की प्रधानता दर्शायी गयी है, जैसे 'सत्येनोत्तमिता भूमिः, सत्ये सर्व प्रतिष्ठितम्, मा हिंस्यात् सर्वा भूतानि, मा गृधः कस्यस्विद्धनम्' इत्यादि। साथ ही समता की दृष्टि का पर्याप्त समर्थन मिलता है, जैसे 'समानी व आकृतिः, समाना हृदयानि वः समानीप्रपा समो वोऽन्नभागः इत्यादि वेदवचन प्राणियों के अभिप्राय एवं हृदय की समानता तथा अन्न जल के समान वितरण पर प्रकाश दे रहे हैं। 'शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः' इस गीता वाक्य से कुत्ते और चाण्डाल में भी समान दृष्टि करना पण्डित का लक्षण बताया गया है। इसी प्रकार "मातृवत्परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ठवत् । आत्मवत्सर्वभूतेषु यः पश्यति सः पण्डितः', इस वचन से भी यह बताया है कि परस्त्री में मातृदृष्टि, परद्रव्य में लोष्ठदृष्टि तथा सभी प्राणियों में आत्मदृष्टि करनेवाला पण्डित होता है। सर्वक्षणिक क्षणिकम, सर्वदुःखं दुःखम का चिंतन वैराग्य की पराकाष्ठा का सूचक है। ऐसे अनेक आदर्श वचनों के रहते हुए आज यह प्रश्न क्यों उठ रहा है कि भारतीय चिंतन परम्परा में नये दर्शन की सम्भावना की जाय। इसका कारण यह है कि ये आदर्श वाक्य भारतीय दर्शन ग्रन्थों में अवश्य हैं, पर इनके अनुसार अनुष्ठान की शून्यकोटि तो कहना सम्भव नहीं, पर हाँ नगण्य वह अवश्य हो चुका है। परिसंवाद-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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