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________________ धर्म ? दर्शन ? विज्ञान ? तीन प्रश्न चिह्नों की अद्यतन नियताप्ति ३०९ साम्यवाद की बात तो कही । अपनी क्रान्तिदर्शिता द्वारा उसके विविध पहलुओं का साक्षात्कार तो किया, किन्तु वे सत्ता के समाजीकरण वा साम्यवाद का सम्यक् साक्षात्कार न कर सके, या कम से कम उसे उतना रेखांकित संहितापाठप्लुत न कर पाये जितना अब के विश्व में अपरिहार्य हो गया है । देश काल दोनों में सत्ता के पूँजीवाद के उत्सादन या सत्ता के साम्यवाद की बात तो कदाचित् ही किसी वैज्ञानिक साधक, दार्शनिक चिन्तक या नेता की अपनी दूरी पकड़ में आ पाई हो । इसे भी दर्शन तथा विज्ञान के परिनिष्ठित ( consummate ) विकास एवं मानव मूल्यों की सम्यक् एवं जीवन्त प्रतिष्ठा के लिए गणित के सूत्रात्मक फलन की भाँति पूर्णतया कार्यान्वित करना होगा । तभी दर्शन एवं विज्ञान अपने लक्ष्य को सिद्ध कर पाएँगे । अन्यथा दंभ, पाखंड, भय, संघर्ष, युद्धादि की स्थिति आती ही जायेगी । इस आलोक यात्रा में धर्म की परिचर्चा की विशेष आवश्यकता नहीं, क्योंकि वह पीछे छूटता जा रहा है, रिटायर होता जा रहा है। उसकी बागडोर मोटे रूप से दर्शन और विज्ञान थामते जा रहे हैं । यह माना जा सकता है कि जैसे परामर्श तथा साधारण देख रेख - केवल उपस्थिति द्वारा अगोर के लिए परिवार में एक वृद्ध का होना हितावह होता है, समाज और मानवता के लिए अंतरिक्ष युग के आरम्भ में लोकव्याप्त सार्वजनिक अगर आदि के लिए अब धर्म की ठीक वही स्थिति हो गई है । Jain Education International For Private & Personal Use Only परिसंवाद - ३ www.jainelibrary.org
SR No.014014
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages366
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size21 MB
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